सरकारी विद्यालयों की स्थिति को लेकर पटना उच्च न्यायालय ने तल्ख टिप्पणी की है। उच्च न्यायालय ने एक रिट की सुनवाई में कहा कि बिहार में शिक्षा के हालत सबसे खराब है। शिक्षा व्यवस्था तभी सुधरेगी, जब अफसरों को इस बात के लिए बाध्य किया जाए कि उनके बच्चे सरकारी विद्यालयों में ही पढ़ें। न्यायमूर्ति डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकल पीठ ने कौशल किशोर ठाकुर की रिट याचिका को सुनते हुए गुरुवार को यह टिप्पणी की। मामला, पूर्णिया में तैनात अतिथि शिक्षकों को हटाने का था। अदालत ने इन शिक्षकों के हटाने के आदेश पर रोक लगा दी। अदालत ने ने कहा कि सबसे संकट की बात यह है कि शिक्षा की बदतर स्थिति की सुध किसी को नहीं है। अदालत ने मुख्य सचिव से पूछा कि सरकार, गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए क्या कर रही है? मुख्य सचिव को अदालत को 23 मार्च तक जवाब देना है। अदालत ने कहा कि अच्छे शिक्षकों की घोर कमी है। इसे पूरा करने के लिए अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति हुई, लेकिन बिना कारण बताए, उन्हें हटा दिया। प्राकृतिक न्याय के खिलाफ शिक्षा विभाग ने जिस तरीके से अतिथि शिक्षकों को हटाया, उससे यही लगता है कि सूबे में कानून का राज महज एक नारा है, जिस पर अमल नहीं किया जाता।
मुख्य सचिव खुद हलफनामा दायर कर बताएं कि बेपटरी हुई शिक्षा व्यवस्था को वापस पटरी पर कैसे लाया जाए, ताकि राज्य का भविष्य जिन करोड़ों गरीब बच्चों पर है, उनको अच्छी शिक्षा मिल सके। मामला पूर्णिया के हाईस्कूल का था। 54 अतिथि शिक्षकों को डीपीओ ने हटा दिया था। याचिकाकर्ता की तरफ से वरीय अधिवक्ता पी. के. शाही और सरकार का पक्ष बिनीता सिंह ने रखा।
राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग विवि में शिक्षकों (सहायक प्रोफेसर) की रिक्ति का इंतजार कर रहा है। सभी विश्वविद्यालयों ने शिक्षा विभाग को रिक्ति अबतक नहीं दी है। 6 माह से लगातार राजभवन और शिक्षा विभाग विश्वविद्यालयों को रोस्टर के अनुसार रिक्ति भेजने के लिए कह रहा है। लेकिन, विवि राजभवन और शिक्षा विभाग के आदेश को नहीं मान रहे हैं। पिछले दिनों राजभवन में आहूत बैठक में हर हाल में रोस्टर के अनुरूप 25 फरवरी तक रिक्ति भेजने का निर्देश दिया गया था। लेकिन, गुरुवार तक विभाग को रिक्ति नहीं मिल सकी। लगभग 6500 सहायक प्रोफेसर के पद पर बहाली होगी, लेकिन 8 विवि से मात्र 2659 रिक्ति मिली है। आकलन के अनुसार विवि में स्वीकृत पद 13564 हैं, जबकि कार्यरत 6079 हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 18 अगस्त 2015 को अपने आदेश में उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी अधिकारियों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाने को कहा था। ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया था।