01 फरवरी,2021। मोतिहारी (पूच)। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के मीडिया विभाग के अंतर्गत आचार्य भरत मुनि संचार शोध केंद्र के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि अपने आशीर्वचन देते अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि भारत के इतिहास में भरत की परंपरा बहुत आदरणीय रही है। चाहे संचार दर्शन के प्रणेता भरतमुनि हों या दुष्यंत के पुत्र भरत, चाहे भगवान राम के अनुज भरत हों या संन्यास परंपरा के भर्तृहरि, सबने इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है। नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरतमुनि इस मामले में विशिष्ट हैं कि उन्होंने अभिव्यक्ति के विभिन्न भावों को जनसामान्य तक पहुंचाने का विशिष्ट सिद्धांत दिया। भारत की आध्यात्मिक औऱ सांस्कृतिक उन्नति में इन सिद्धांतों की महती भूमिका रही है। आधुनिक संचार प्रणाली भी नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों की उपेक्षा नहीं कर सकती, उसे अभी वहां तक पहुंचना है जहां तक नाट्यशास्त्र की पहुंच काफी पहले से है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह शोध केंद्र संचार के नए सिद्धांतों के साथ भारतीय परंपरा के अनछुए पहलुओं को दुनिया के सामने लाने में सफल होगा। मुख्य वक्ता प्रो.ओमप्रकाश सिंह ने कहा है कि भरतमुनि न केवल भारतीय बल्कि आदिम संचार सिद्धांत के जनक हैं। उनकी प्रसिद्ध कृति नाट्यशास्त्र का उल्लेख आदिकवि वाल्मीकि की रामायण और महर्षि व्यास रचित महाभारत में भी है। इस ग्रंथ में मानवीय संचार प्रणाली के इतने तौर-तरीकों का वर्णन है कि पाश्चात्य संचार के सिद्धांत इनके आगे कुछ भी नहीं हैं। कार्यक्रम का आयोजन विवि के जिला स्कूल स्थित चाणक्य परिसर के राजकुमार शुक्ल सभागार में किया गया था।
कार्यक्रम को ऑनलाइन संबोधित करते प्रो. सिंह ने कहा कि पाश्चात्य विद्वानों में हर बात को ईशा के सौ डेढ़ सौ साल आगे पीछे का बताने की परंपरा रही है जबकि भरतंमुनि का नाट्यशास्त्र अत्यंत प्राचीन और संचार के सिद्धांतों के मामले में दुनिया का सबसे पहला सिद्धांत है। नृत्य, गीत और संवाद सहित कलाओं और मानवीय संवेदना के इतने पक्ष इसमें परिभाषित किए गए हैं कि इसे भारतीय मनीषा ने पंचम वेद की मान्यता दी है। उनके नाम पर शोध केंद्र की स्थापना कर विवि के मीडिया विभाग ने बड़ा काम किया है। इसके लिए विवि के कुलपति सहित पूरा प्रशासन बधाई का पात्र है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी केंद्रीय विवि के प्रतिकुलपति प्रो.जी. गोपाल रेड्डी ने अपनी शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विवि ने पांच साल की छोटी अवधि में ही ग्यारह विभिन्न शोधकेंद्रों की स्थापना कर विशिष्ट क्षेत्र में शोध की महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि तैयार की है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हम अपने अतीत के अनछुए पहलुओं को विश्व पटल पर मजबूती से रखें और इसमें शोध केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा के नेतृत्व में विवि नित नए आयाम स्थापित कर रहा है।
इससे पहले आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए विभागाध्यक्ष सह शोध केंद्र के अध्यक्ष डा.प्रशांत कुमार ने कहा कि महाभारत कालीन समाज में तकनीक के हर क्षेत्र में हम आगे थे लेकिन कालांतर में हम अपनी उपलब्धियों की ओर से विमुख हो गए या कर दिए गए। इस शोध केंद्र के माध्यम से भारतीय प्राचीन परंपराओं का अध्ययन करने का शोधकर्ताओं को अवसर मिलेगा। शोध केंद्र के गठन की अनुमति के लिए उन्होंने कुलपति का आभार व्यक्त किया। समन्वयक डॉ.अंजनी कुमार झा ने अपने संचालन सह स्वागत में विवि के कुलपति, प्रतिकुलपति समेत अन्य पदाधिकारियों सहित मीडिया अध्ययन विभाग के सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों से शोध केंद्र के संचालन में सहयोग करने का आग्रह किया। सह समन्वयक डा.साकेत रमण ने शोध केंद्र की स्थापना की पृष्ठभूमि की चर्चा करते इसमें कुलपति व विभागाध्यक्ष के योगदान की सराहना की। डॉ. रमण ने बताया कि शोध केंद्र के अन्तर्गत दो शोधार्थियों को संबद्ध विषयों पर पीएचडी कराया जाएगा एवं लघु शोध कार्य हेतु फेलोशिप प्रदान करने की भी योजना है।
इस अवसर पर विवि के विभिन्न विभागों के डीन, विभागाध्यक्ष एवं प्राध्यापक जिसमें डीएसडब्ल्यू प्रो.आनंद प्रकाश, डीन एवं वित्त अधिकारी प्रो. विकास पारीक, परीक्षा नियंत्रक केके उपाध्याय, प्रो.अजय कुमार गुप्ता, प्रो. प्रणवीर सिंह, प्रो. अन्तरत्रण पाल मीडिया अध्ययन विभाग के शिक्षक डा.परमात्मा कुमार मिश्र, डा.सुनील दीपक घोडके, डा.उमा यादव सहित मीडिया अध्ययन के तमाम शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद थे। साथ ही वर्चुअल प्लेटफार्म पर भी गूगल मीट के जरिए दर्जनों लोग इस आयोजन से जुड़े रहें।