नई दिल्ली : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 70 वर्ष की उम्र से पहले होने वाली मौतों के लिए कैंसर एक प्रमुख वजह बनकर उभरा है। हालाँकि, बीमारी के बारे में जागरूकता और इसकी शुरुआती पहचान से तो कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों की रोकथाम की जा सकती है। नोएडा स्थित राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं अनुसंधान संस्थान (एनआइसीपीआर) की निदेशक डॉ शालिनी सिंह ने ये बातें कही हैं।
डब्ल्यूएचओ की एक ताजा रिपोर्ट में दस में से एक भारतीय को उसके जीवनकाल में कैंसर की चपेट में आने और पंद्रह भारतीयों में से एक की इस बीमारी से मौत होने की आशंका व्यक्त की गई है। ‘वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट’ के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में कैंसर के 11.6 लाख नये मामले सामने आए थे, जिसके कारण 7.84 लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी। डब्ल्यूएचओ ने गरीब देशों में वर्ष 2040 तक कैंसर के मामले 81 फीसदी तक बढ़ने की आशंका जतायी है।
डॉ शालिनी सिंह ने कैंसर के शीघ्र निदान पर जोर देते हुए कहा कि “कैंसर के ज्यादातर मामलों में बीमारी के अंतिम चरणों में पता चल पाता है। जल्दी निदान से कैंसर के उपचार में अधिक फायदा हो सकता है। अगर पहली या दूसरी अवस्था में कैंसर का पता चल जाए तो इसका उपचार हो सकता है और बीमारी की पुनरावृत्ति की दर को कम किया जा सकता है।”
डॉ सिंह ने कहा, “प्रारंभिक अवस्था में पता चल जाए तो अधिकांश कैंसर सर्जरी से हटाए जा सकते हैं और कई बार तो कीमोथेरेपी से भी बचा जा सकता है। आमतौर पर कीमोथेरेपी उपचार की संभावना को बढ़ाने और पुनरावृत्ति की संभावना को कम करने के लिए किया जाता है। हालाँकि, कीमोथेरेपी के बारे में बहुत सारे मिथक हैं जिनके बारे में आम जनता को शिक्षित होना चाहिए।”
डॉ शालिनी सिंह नई दिल्ली में कैंसर रोकथाम पर पब्लिक रिलेशन्स सोसायटी ऑफ इंडिया (पीआरएसआई) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं। इस दौरान मौजूद विशेषज्ञों ने व्यक्तिगत, समुदायिक, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और सरकार के स्तर पर कैंसर की रोकथाम से जुड़े सार्वजनिक जागरूता प्रयासों में सुधार के साथ-साथ प्रारंभिक अवस्था में बीमारी की पहचान एवं निदान सेवाओं को सुलभ बनाने की बात कही है।
कार्यक्रम में देश के प्रख्यात डॉक्टरों ने कैंसर का पता लगाने से जुड़े तरीकों, संकेतों और लक्षणों की पहचान के साथ-साथ स्क्रीनिंग टेस्ट या मेडिकल इमेजिंग के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि ऊतक (टिश्यू) के नमूने के माइक्रोस्कोपिक परीक्षण से कैंसर का निदान हो सकता है और इलाज में कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और सर्जरी जैसे तरीकों का उपयोग होता है। इलाज शुरू होने पर बीमारी से उबरने की संभावना कैंसर के प्रकार, स्थान और बीमारी की अवस्था के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।
पीआरएसआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अजीत पाठक ने कहा, “कैंसर को रोकने के लिए हम तत्परता के साथ जागरूकता अभियान चला रहे हैं। इस पहल के साथ, हम चाहते हैं कि लोगों को पता चले कि कैंसर का प्रबंधन किया जा सकता है और सही समय पर इसकी पहचान एवं इलाज करके इस बीमारी से उबरा भी जा सकता है।”
पीआरएसआई की दिल्ली इकाई के प्रमुख शरद मोहन शुक्ला ने कहा, “इस तरह के जागरूकता कार्यक्रम कैंसर से जुड़ी गलत धारणाओं को तोड़ने और इस भयावह बीमारी के कारण होने वाली असमय मौतों को कम करने में मददगार हो सकते हैं।” (इंडिया साइंस वायर)