स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष
स्वामी विवेकानंद जी का जीवन चरित्र विश्व में सर्वाधिक लिखा-पढ़ा और प्रेरित करने वाला चरित्र है। भारत में भी अनेक महापुरुष, क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ताओं के कार्य की प्रेरणा स्वामी जी बने हुए हैं । एक ऐसा व्यक्तित्व जो जितना पढ़ा जाए उतना ही कम लगता है। मैंने भी स्वामी जी से जुड़ी 30 से अधिक पुस्तकें पढ़ी है पर जब भी कोई बौद्धिक भाषण सुनकर आता हूं नया कुछ मिलता है।
एक सामान्य परिवार में जन्म, सहज बचपन, युवावस्था की कठिनाइयां, नौकरी के लिए संघर्ष, परिवार की गरीबी सभी कुछ जो सामान्य भारतीय परिवार में होता है। वह सब नरेंद्रनाथ दत्त के साथ हुआ, पर ऐसा क्या था जो इतनी छोटी सी आयु में उन्होंने किया और उन्हें लाखों-लाखों युवाओं का आदर्श बना दिया, बहुत चिंतन किया और विचार किया कि ऐसी बातें लिखता हूं। बातें बहुत सी है पर युवाओं के मन को बदलने वाली कुछ नवरत्न बातें यह है –
1. शिक्षा और स्वास्थ्य- बचपन से जवानी तक जितनी कलाएं विधा नरेंद्र ने सीखी वह उनके अत्यंत परिश्रमी होने का संदेश है। एक नवयुवक को करने योग्य खेल, व्ययाम,संगीत, शिक्षा सभी में अग्रणी थे। उन्होंने युवाओं से कहा कि युवाओं को एक बार तो गीता पढ़ना छोड़ कर भी मैदानों में जाना चाहिए, अपने शरीर से पसीना निकालना चाहिए, इस शरीर को ताकतवर बनाना चाहिए क्योंकि मजबूत शरीर में ही ईश्वर का निवास होता है।
2. उज्जवल चरित्र- नरेंद्रनाथ दत्त से विवेकानंद बनने तक अनेक सहज आकर्षणों आह्वानो के बीच उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया, उन्होंने प्रत्येक सफलता के पीछे ब्रह्मचर्य के कारण उत्पन्न एकाग्रता को श्रेय दिया, अपने जीवन को उन्नत बनाया और संपूर्ण विश्व को भारत के सांस्कृतिक अध्यात्मिक महानता के समक्ष नतमस्तक किया। उनके समरण शक्ति व वाकचातुर्य और आत्मविश्वास के पीछे अनेक उज्जवल चरित्र का मजबूत आधार है।
3. लक्ष्य के प्रति समर्पण- ‘‘विद्या ददाति विनयम’’ नरेंद्र अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण महाराज और उनके बताए जीवन लक्ष्य के प्रति आजीवन समर्पित रहे। उन्होंने कहा कि जीवन में मैंने जो कुछ अच्छा किया वह मेरे गुरुदेव के कारण हुआ है और जो कुछ गलत किया वह मेरे कारण हुआ है । स्वामी जी रामकृष्ण देव को अवतार मानते थे। जिस प्रकार राम भक्त हनुमान जी ने अपना सीना चीर कर भगवान श्री राम के दर्शन करवाए थे उसी प्रकार नरेंद्र ने गुरुदेव की कैंसर की बीमारी के समय उनके मुख से वापिस निकला दलिया अपने हाथों से अपने गले में उतार कर शिष्यों के सामने समर्पण की पराकाष्ठा का उदाहरण रखा। जीवन में इतना परिश्रम किया की मृत्यु के समय शरीर 36 बीमारी से ग्रसित था लक्ष्य प्राप्ति की इतनी तडफन से ईश्वरत्व मिला है।
4. चुनौतियों का सामना – स्वामी विवेकानंद ने परिव्राजक के रूप में संपूर्ण भारत का भ्रमण किया उन्होंने देश की समस्याओं और संभावनाओं को स्वयं प्रत्यक्ष महसूस किया और अंत में कन्याकुमारी की शिला पर तीन दिन तक चिंतन किया और भारत के भविष्य की योजना बनाई एवं उस पर कार्य किया। उन्होंने कहा केवल कुछ जानकारी सूचनाएं जो हमारे पास विभिन्न स्त्रोतों से आती है उनको प्राप्त करने मात्र से हमारे कर्तव्य मार्गो माध्यमों के बारे में संपूर्ण जानकारी और शक्ति नहीं मिलेगी। हमें प्रत्यक्ष अनुभूति करनी होगी। विशेषतया सामाजिक कार्य के लिए तो समाज की समस्याओं, चुनौतियों से जुड़ाव जरूरी है । उसी से उस कार्य को करने की इच्छा प्रबल से प्रबल होती है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है
5. समाजिक योद्धा सन्यासी- सन्यासी के जीवन का उद्देश्य अपने गुरु के मार्गदर्शन में जीवन भर तपस्या कर मोक्ष प्राप्ति करना रहता है। जब नरेंद्र नाथ ने अपने गुरु रामकृष्ण देव से इसकी आज्ञा मांगी तब गुरु ने कहा छीः नरेंद्र तुझे लज्जा नहीं आती तुम इतने स्वार्थी हो तुम्हें तो वट वृक्ष के समान संसार को छाया देनी है । शिव भाव से प्राणी मात्र की सेवा करनी है। यही तुम्हारा जीवन पथ है। तब से ही नरेंद्र ने अपने जीवन को कर्मपथ पर आगे बढ़ाया और गीता के कर्म योग के मार्ग को अपनाया। बचपन में अपने घर से ही छुआछूत जैसे सामाजिक बुराई के विरोध में आदर्श प्रस्तुत करके आगे भी अपने गुरुदेव की आज्ञा से अपने जीवन को आध्यात्मिकता की उन्नति के साथ साथ समाज की विभिन्न बुराइयों आवश्यकताओं के लिए समर्पित किया । विभिन्न राजाओं विशिष्ट जनों से चर्चा करते हुए अध्यात्म के साथ-साथ शिक्षा, कृषि, तकनीकी, उद्योग एवं विज्ञान विषय पर चर्चा करते थे उनकी आवश्यकता उपयोगिता बताते थे । वे स्वतंत्रता के लिए तडपते थे ऐसे कार्यशैली के कारण विवेकानंद हम सब कार्यकर्ताओं के लिए आदर्श है। वह समाजिक योद्धा सन्यासी हैं
6. सकारात्मकता का संदेश- स्वामी जी के जीवन का प्रत्येक क्षण हमको सकारात्मकता सिखाता है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी कभी नकारात्मकता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा समस्या कहां नहीं है, कब नहीं थी, मुझे यह भी पता है कि अन्य देशों की बजाय भारत में समस्याएं ज्यादा है, जटिल भी है। वर्षों से सहस्त्रों विषय हमें दुर्लभ करते हैं। जो हमारी हिंदू जाति को शक्तिहीन कर सकती है किंतु ऐसी सभी दुर्बलताओं का प्रवेश विगत एक हजार वर्षों में हुआ है और हमारे पास तो उससे भी पूर्व हजारों वर्षों का स्वर्णिम इतिहास, महान पूर्वज एवं उनके द्वारा किए गए महान कार्य हैं। जिनसे हम शक्ति अर्जित करते हैं । हमारे पास वेद, उपनिषद सहित विश्व का प्राचीनतम श्रेष्ठतम ज्ञान विज्ञान तकनीक से ओतप्रोत नाम साहित्य है। जिनसे हम शक्ति अर्जित करते हैं। उन्होंने कहा कि अतीत की नीव पर ही भविष्य की इमारत खड़ी होती है। अतः जहां तक हो सके स्वर्णिम अतीत को देखो अपने पूर्वजों द्वारा किए गए कार्यों को देखो और भारत को संपन्न समृद्ध बनाने में अपना श्रेष्ठ योगदान दो। क्योंकि भारत का भविष्य उज्जवल है हमें केवल निमित्त बनना है।
7. योजकता- स्वामी विवेकानंद ने 12 वर्षों के परिव्राजक जीवन के बाद जब शिला स्मारक कन्याकुमारी में 3 दिन चिंतन किया और भारत के पुनरुत्थान के लिए अपनी ओर से एक क्रांतिकारी योजना सबके सामने रखी, उन्होंने कहा हमें प्राचीन महान आचार्यों के उपदेशों का अनुसरण करना चाहिए, सारे इतिहास को नवीनतम सोच के साथ पुनः लिखना है । भारत का पुनर्जागरण करना है यदि भारत जागेगा तो संपूर्ण विश्व को जागृत करेगा ऐसा उनका विश्वास था। उन्होंने देश के लोगों को आत्म
श्रद्धा रखने, जागृत करने का आह्वान किया और इसके लिए हमें हमारी महान संस्कृत भाषा का अध्ययन करने करके अपने पूर्वजों द्वारा किए गए महान अविष्कारों, उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं, विचारों को दुनिया के सामने लाना होगा, उनको अनंत विस्तार देना होगा। इस महान कार्य के लिए भी भारत में ऐसे शिक्षालय खोलना चाहते थे जहां हमारे नवयुवक शास्त्रों में शिक्षित होकर संपूर्ण विश्व में भारत की श्रेष्ठता का प्रचार करें।
8. विचार परिवर्तन के वाहक- जिस प्रकार युवा शब्द वायु के विपरीत शब्द है। उसका तन मन हवा के विपरीत चलता है। स्वामी विवेकानंद ने युवा मन को स्वीकार होने वाले कुछ परिवर्तन कार्य विचार रखें उन्होंने कहा कि आगामी कुछ वर्षों के लिए सभी देवी देवताओं को तालों में बंद कर दो केवल भारत माता की पूजा करो। उन्होंने पद्धति भी बताई कि गरीब की शिक्षा को पूजा, शिक्षा के केंद्रों को तीर्थ स्थल, औषधि को अध्यात्म और मानवता के उत्थान को उन्नति माना जाए तो ही भारत माता की वास्तविक पूजा हो सकती है। उन्होंने रूढि और कुरितियों को धर्म नहीं कहा है और केवल मानवता की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।
उन्होंने देश भक्ति की नई परिभाषा देते हुए तीन बातें कहीं प्रथम तो आप देश समाज के कष्टों को हृदय से अनुभव करो, दूसरी उस पीड़ा को दूर करने के लिए आपने कोई यथार्थ कर्तव्य पथ निश्चित कर लिया है और तीसरी बात जैसे तुम सत्य समझते हो उसे पूर्ण करने के लिए पर्वताकार बाधाओं को लांघ कर कार्य करने के लिए तैयार हो जाओ तभी तुम सच्चे देशभक्त हो। स्वामी जी ने अपने जीवन से इसे प्रमाणित किया स्वामी जी ने अपने जीवन में साधारण बातों से ही अनेक लोगों के जीवन को बदलने का महान कार्य किया है। आज देश में ही नहीं विदेशों में भी स्वामी जी के जीवन से प्रेरणा लेकर कार्य करने वाली संस्थाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
9.युवकों का आहवान- स्वामी विवेकानंद ने स्पष्ट कहा कि मेरा विश्वास आधुनिक युवा पीढ़ी में है। उनमें से ही हमारे कार्यकर्ता आएंगे और सिंह के समान सभी समस्याओं का समाधान करेंगे। उन्होंने युवाओं से सामाजिक कार्य का आहवान करते हुए कहा कि हमें कर्म करना है। अपने स्वार्थ के लिए धनोपार्जन करने की अभिलाषा रखने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण कार्य करने हैं । अपनी हिंदू जाति, देश राष्ट्र और समग्र मानवता के कल्याण के लिए आत्मोत्सर्ग करना इससे बहुत ऊंचा है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जाति का इतिहास देखो जितनी शक्तियों का विकास हुआ है सभी साधारण मनुष्यों के भीतर से हुआ है किसी बात से डरो मत तुम भी अद्भुत कार्य करोगे ।
उन्होंने यौवन को राष्ट्र कार्य में लगाने का आह्वान किया कि वेदों में कहा है कि युवक बलशाली, स्वस्थ्य, तीव्र मेघा वाले और उत्साह युक्त मनुष्य ही ईश्वर का कार्य कर सकता है। तुम्हारे भविष्य को निश्चित करने का यही सही समय है, इसलिए मैं कहता हूं कि अभी इस भरी जवानी में ही कार्य करो जीर्ण शिर्ण सिंह होने पर कार्य नहीं होगा और फिर ईश्वर के चरणों में सबसे ताजे बिना स्पर्श किए, बिना सुघें के फूल ही चढ़ते हैं और ईश्वर उसे ही ग्रहण करते हैं ।
स्वामी विवेकानंद जी के जीवन आदर्श से मिलने वाली प्रेरणास्पद अनेक को बातों में से इन महत्वपूर्ण नवरत्न बातों ने मेरे जैसे अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं के जीवन को जीने का दिशा प्रदान की है। उपरोक्त सभी बातों को वर्तमान समय में जीवन आदर्श बनाने के लिए स्वामी जी ने संगठन बनाने पर जोर दिया क्योंकि संघ शक्ति कलियुगे का मंत्र शास्वत सत्य पर आधारित युग अनुकूल आवश्यकता है।
(लेखक अ.भा.विद्यार्थी परिषद के उत्तर क्षेत्रीय संगठन मंत्री है )