- वीरेन्द्र सिंह
भारत के वीर महापुरुषों में से एक शिवाजी महाराज के बारे में कौन नहीं जानता। लोग उन्हें महाराष्ट्र की शान कहते हैं तो कुछ लोग उन्हें निडरता और साहस की प्रतिमूर्ति मानते हैं। भारत के वीर पुत्रों में से एक शिवाजी अपनी माता के बहुत प्रिय और आदर्श पुत्र थे। शिवाजी महाराज भारत के उन महान वीरों में से एक हैं, जिन्होंने अपने साहस, बुद्धि और रणनीति से अपने शत्रुओं को नाको चने चबवा देते थे। शिवाजी पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी भारतीय इतिहास और राजनीति से अच्छी तरह से परिचत थे। सच्चे देशभक्त, कुशल प्रशासक, आदर्श पुत्र, वीर योद्धा, धर्मात्मा और न जाने कितने नामों से पुकारे जाने वाले शिवाजी राजे भोसले का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी, दुर्ग में हुआ था। शिवाजी के पिता साहजी भोसले और माता जीजाबाई थीं। शिवाजी की प्रथम गुरु उनकी माता जीजाबाई थी। माता से ही इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा और युद्ध रणनीति सीखी थी। माता ने ही इन्हें तलवार चलाना, युद्ध की रणनीति बनाना और युद्ध के सारे कौशल सिखाये थे। इसमें इनके दादा कोणदेव का भी अहम योगदान था। इसके कारण बहुत कम उम्र में ही युद्ध में वे निपुण हो गए थे। मात्र 16 वर्ष की उम्र में ही इन्होंने पुणे के तोरण दुर्ग पर आक्रमण करके विजय प्राप्त किया था। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था।
शिवाजी एक कुशल योद्धा थे। उनकी सैन्य प्रतिभा ने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली शासक को भी विचलित कर दिया था। शिवाजी की अभिनव सैन्य रणनीति उन्हें उनके शत्रुओं में भय पैदा करती थी। यह शिवाजी की कुशल नीतियों के ही कारण था कि जब बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी को बंदी बनाना चाहा, लेकिन वो असफल रहा तब उसने शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले को बधंक बना लिया। ऐसे में शिवाजी ने आदिलशाह के महल में घुसकर अपने पिता को बाहर निकाला था। वीर शिवाजी की गोरिल्ला युद्ध नीति जग प्रसिद्ध है। इसके तहत शिवाजी ने औरंगजेब को नाको चने चबवा दिया था। शिवाजी महाराज ने अपने विजय अभियान की शुरुआत छोटे किलों तथा बीजापुर राज्य के कुछ प्रदेशों पर विजय प्राप्त करके की थी। इसके बाद उन्होंने कई प्रदेशों और किले पर विजय प्राप्त किया था।
शिवाजी 1674 में महाराष्ट्र के शासक बने। हिन्दू परम्परा के अनुसार उनका राज्यभिषेक किया गया। राज्यभिषेक के बाद ही शिवाजी को छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया था और तभी से वे छत्रपति शिवाजी कहलाने लगे थे। राज्यभिषेक के बाद उन्होंने मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए जीवन भर काम किया। शिवाजी महाराज जनता की सेवा ही अपना धर्म मानते थे। उन्होंने प्रजा में जाति-पाति लेकर कोई भेदभाव नहीं किया। उनकी नजर में सब एक समान थे। वे सभी धर्मों का आदर करते थे। उन्होंने शासकीय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया था। इस कारण वे बहुत लोकप्रिय भी हुए थे।
शिवाजी ने सन 1677-78 में मुंबई के दक्षिण में कोंकण, तुङभद्रा नदी के पश्चिम में बेलगाँव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी को अपने अधिकार में ले लिया। इसके बाद ही उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया था। शिवाजी का अंतिम समय घरेलू उलझनों व समस्याओं में व्यतीत हुआ। वे अपने बड़े पुत्र शम्भाजी के व्यवहार से अत्यधिक चिन्तित रहते थे। 4 अप्रैल, 1680 को बीमारी के चलते इस महान वीर पुरुष का देहांत हो गया।
शिवाजी के विचार आज भी प्रासंगिक
वीर शिवाजी कहते हैं कि “अगर मनुष्य के पास आत्मबल है, तो वो समस्त संसार पर अपने हौसले से विजय पताका लहरा सकता है। अर्थात व्यक्ति को अपने पर पूरा भरोषा है तो वह अपने विश्वास से किसी भी लक्ष्य पर विजय प्राप्त कर सकता है। उनकी यादें आज भी हिंदुस्तान की मिट्टी में जिन्दा हैं व प्रासंगिक हैं। ऐसे महापुरुष मरते नहीं बल्कि अमर शहीद हो जाते हैं।
छत्रपति शिवाजी से जुड़ी रोचक बातें
-शिवाजी महाराज ने अपने नाम से एक सिक्का भी चलाया था।
-शिवाजी ने अपने राज्य की मुद्रा संस्कृत भाषा में जारी की थी।
-शिवाजी महाराज के शासन में 250 से अधिक किले थे, जिनकी मरम्मत पर वह बड़ी रकम खर्च करते थे।
-शिवाजी महाराज ने औरंगजेब को टक्कर देते हुए एक बड़े भू-भाग को उसके चंगुल से छुड़ाया था।
-शिवाजी महाराज के जीवन का हिस्सा ज्यादातर अपनी मातृभूमि की रक्षा में ही बीता था।
-शिवाजी के साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे।
-शिवाजी महाराज शुक्राचार्य और कौटिल्य को अपना आदर्श मानते थे।
-शिवाजी महाराज से सम्बंधित आठ प्रसिद्ध किले – प्रतापगढ़ किला, अर्नाला का किला, लोहगढ़दुर्ग का किला, सुवर्णदुर्ग का -किला, सिंधुदुर्ग का किला, रायगढ़ का किला, पुरंदर का किला, शिवनेरी किला।
(लेखक बहुभाषी संवाद समिति ‘हिन्दुस्थान समाचार’ से जुड़े हैं।)