संकल्प लेने का दिवस बने गणतंत्र दिवस – अभिषेक रंजन

गणतंत्र दिवस पर विशेष

गणतंत्र दिवस, भारत का एक राष्ट्रीय उत्सव! एक ऐसा दिन जब भारत के गणतांत्रिक देश बनने और उस संविधान के लागू होने को याद करते है, जो इस विशाल देश को एकसूत्र में पिरोकर रखने और एकजुट हो आगे बढ़ने की राह दिखाता है. गणतंत्र दिवस महज हमें देश की सैन्यशक्ति, पराक्रम और शौर्य का प्रदर्शन देखने का ही अवसर नही देता बल्कि एक लोकतांत्रिक देश के रूप में हमारी अब तक की यात्रा को जानने और भविष्य के चुनौतियों एवं अवसरों को समझने का मौका भी देता है.

1950 से अबतक की यात्रा को देखे तो जहाँ पचास के दशक में भारत सदियों की गुलामी के बाद उठ खड़ा होने की जद्दोजहद कर रहा था, वही आज वह विश्व पटल पर न केवल महत्वपूर्ण स्थान रखता है बल्कि एक वैश्विक नेता के नाते भी देश की पहचान बनी है. हाल के कुछ उदाहरणों से इसे भली भांति समझा जा सकता है. भला11 दिसंबर2014 को कौन भारतीय भूल सकता है, जब संयुक्त राष्ट्र में अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के भारत के प्रस्ताव को 177 देशों ने समर्थन दिया. यह अपने आप में एक अनोखी और अद्वितीय घटना थी, जब संयुक्त राष्ट्र के सामान्य सभा में इतनी अधिक संख्या में किसी प्रस्ताव पर इतनेदेशों ने सहमती जताई, सह-आयोजक बनने को वे तैयार हुए. यह भारत की वैश्विक ताकत का ही नजारा था.सर्जिकल स्ट्राइकके बाद विश्व का भारत को मिला समर्थन उसपर मुहर भी लगाती है.बेहद संस्ती लेकिन सबसे प्रभावी मंगलयान का प्रक्षेपण भारत की स्वदेशी वैज्ञानिक तकनीक का वह गर्वित पल था, जहाँ देश ने दुनिया के सामने अपनी वैज्ञानिक ताकत का लोहा मनवाया. आज इसरो न केवल भारत बल्कि कई देशों के अंतरिक्ष में पहुचने के सपने को साकार करने का जरिया भीबना हुआ हैजो भारत को एक सॉफ्ट पॉवर के रूप में प्रस्थापित करता नजर आता है.बीते कुछ सालों में देश ने न केवल अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की बल्कि दुनियाभर में फैले भारत वंशियों को देश की प्रगति में हाथ बटाने और एक नए भारत के निर्माण में सहयोगी बनाने की भी कोशिशें की है. यही वजह है कि विश्व के देशों में भारतवंशियों की प्रतिष्ठा न केवल बढ़ी है बल्कि वे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक स्थिति भी प्राप्त करने में सफल हुए है. विगत दिनों अमेरिका हो या ब्रिटेन, कई देशों के आम चुनावों में भी इसकी छाप सहज महसूस की गयी.

भारतआज विश्व की सबसे अधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. दुनिया के देश भारत को पहले एक बड़ा बाजार समझते थे. आर्थिक उदारीकरण ने देश के इस बाजार को दुनिया के लिए खोल दिया, विनिवेश और विमुद्रीकरण ने अवसर उत्पन्न किये. परिणामतः देश सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र बनकर रह गया. देश के बदले नेतृत्व ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश बनाने का संकल्प ले मेक इन इंडिया का स्वप्न देखा. आज परिस्थितियां बदलती दिखाई दे रही है. देश के युवाओं को रोजगार मिले, यह स्वप्न एक लम्बे समय से हकीक़त का रूप नही ले सकी. सभी ने सरकारी नौकरी को ही रोजगार माना, देश की ताकत स्व-रोजगार और यहाँ के युवाओं की नवाचारी प्रवृति को अनदेखा किया.आजदेश ने स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसे अभियानों के साथ स्व-सशक्तिकरण के रास्ते खोले, युवाओं को मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के जरिये स्वयं के बल खड़ा होने का अवसर दिया. स्वच्छताका मसला हो अथवा सामाजिक विकास के अवसर मुहैया कराने का, देश ने विगत वर्षों में एक बेहद रचनात्मक परिवर्तन होते देखा है. राजनीतिक प्रक्रियाओं में युवाओं के बढ़ते हस्तक्षेप ने जहाँ पारदर्शिता और राजनीतिक शुचिता के बहस को आगे बढ़ाने का काम किया, वही देश में आर्थिक पारदर्शिता के प्रयासों को भी उसने सराहा.सामरिक शक्ति बढ़ाने की हो या फिर सामाजिक बुराईयों को लेकर जन-जागरूकता,गणतंत्र को मजबूत करने के सभी प्रयासों ने देश को आगे बढ़ने की दिशा दी.संविधान के मूल्यों के अनुरूप समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा का लक्ष्य लेकर किये कई प्रयासों ने इसे बल प्रदान किया.

इन सबके बावजूद आजभारत कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. एक तरफ जहाँ हम वैज्ञानिक प्रगति के मामले में, आर्थिक उन्नति के आंकड़ों में दुनिया के सामने नजीर पेश कर रहे है, खेलके मैदान से लेकर अंतरिक्ष तक, भारतीय प्रतिभा हमें गौरवान्वित होने का अवसर दे रही है, वहीदेश का एक बड़ा हिस्सा अभी भी जबग़रीबी की जिन्दगी जीने को अभिशप्त औरबुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संघर्षरत दिखाई देता है तो‘हमें बहुत कुछ करनाबाकी है’ का एहसास होता है. हम विश्व शांति के प्रयासों में जुटे है, वही देश का अहित चाहनेवाले ताकतों द्वारा अंजाम दी जा रही सामाजिक टकराव की घटनाएंऔर आंतरिक सुरक्षा के सामने खड़े प्रश्न देश के हर संवेदनशील मन-मष्तिष्क को बेचैन करते है और प्रतिप्रश्न करते है कि आखिर ये क्यों हो रहा है?एक तरफ जहाँ दुनिया का सर्वाधिक शक्तिशाली देश अमेरिका आज भी एक महिला को राष्ट्राध्यक्ष की जिम्मेवारी नही दे सका है,वही भारतके सर्वोच्च पदों को न केवल महिलाओं ने सुशोभित किया बल्कि महिलासशक्तिकरणके प्रति देश के जन-मन के सम्मान की वो सर्वोच्च अभिव्यक्ति भी बनी. अफ़सोस आज उसी भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति दिखाई पड़ती है. विश्व गुरु भारत के प्रबुद्ध मेधावी नागरिक पुरे दुनिया के कोने कोने में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं देकर भारतीय प्रतिभा का परिचय दे रहे है वही आज भी देश की आबादी का एक हिस्सा प्राथमिकशिक्षा से वंचित दिखाई देता है. इन विरोधाभासों के बीच देश आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति लिए प्रयासरत है.

आज आवश्यकता है कि हम इन परिस्थितियों में सकारात्मक चिंतन लिए कार्य करें.देश की युवाशक्ति भारत को स्वाभिमानी बनाने का संकल्प लिए कार्य करने का संकल्प ले तो कुछ भी असंभव नही. अगर विजय भाटकर यह जानकर शांत बैठ जाते कि अमेरिका सुपर कंप्यूटर बनाने की तकनीक साझा नही कर रहा है तो भारत कभी भी परम कंप्यूटर नही हासिल कर पाता. युवा कलाम एकबार मिली असफलता से चिंतित होकर स्वयं को अलग कर लेते तो भारत के पास आणविक क्षमता समय रहते नही हासिल होती. युवा नरेंद्र अपनी परेशानियों के साये तले जीवन जीना मंजूर कर लेता तो देश को दिशाबोध कराने वाला एक नायक नही मिलता. इसलिए भारत को आज आवश्यकता है उन युवाओं की जो देश की बेहतरी के संकल्प देखते है. छोटी छोटी ख्वाईशों को छोड़कर, अपने सिमित दायरों को लांघकर देशहित कुछ स्वप्न देखते है और उन्हें पूरा करने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देते है. आजभले देश में हजारों समस्याएं हो, अगर देश के युवा यह ठान लें कि हमें मिलकर इन समस्याओं का समाधान ढूँढना है, समस्याओं पर अपनी भड़ास निकालने की वजाए उसके समाधान हेतु प्रयास करना है तो स्थितियां बदलेगी. गणतंत्र दिवस का यह अवसर कुछ वैसे संकल्प लेने का है, जो देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान देने और किसी समस्या या भावी चुनौती के समाधान का रास्ता दिखाए.यदि हम मिलकर प्रयास करेंगे तो निश्चित रूप से एक बेहतर भारत बनाने का स्वप्न अवश्य पूरा होगा, जो देश की प्राचीन वैभवशाली बुनियाद पर एक भव्य भारत बनाने का कार्य करेगी, जहाँ लोग विश्व शांति और कल्याण हेतु संकल्पबद्ध होंगे, देश की आर्थिक व सामाजिक प्रगति में हाथ बंटाते दिखेंगे.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। )

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