बाबाधाम में लगती है अनोखी बिल्वपत्र प्रदर्शनी, 134 साल पुरानी है यह परंपरा

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बिल्व पत्र प्रदर्शनी बाबाधाम देवघर
बिल्व पत्र प्रदर्शनी बाबाधाम देवघर

जितना सुंदर बाबाधाम है उतनी ही निराली है यहां की परंपराएं….विविधताओं से भरे इस भोले की नगरी में ऐसी ही एक परंपरा है सावन मास में बिल्वपत्र प्रदर्शनी की परंपरा। मान्यता है कि बिल्वपत्र यानी बेल पत्र चढ़ाने से महादेव बहुत खुश होते हैं। भोलेनाथ के लिए बिल्वपत्र अति प्रिय होने की वजह से बैद्यनाथधाम (बाबाधाम) के पुरोहित दुर्लभ बिल्वपत्र की प्रदर्शनी लगाते हैं। पुरोहित समाज से लोग दूर-दराज जंगलों से अलग – अलग दुर्लभ प्रजाति के बिल्वपत्र चुनकर लाते हैं फिर मंदिर में इनकी अनोखी प्रदर्शनी लगाई जाती है। इसे देखने के लिए श्रद्धालु साल भर का इंतजार करते हैं।

जानें कैसे होता है बिल्वपत्र का ये अनोखा प्रदर्शन

पुरोहितों व बांग्ला पंचाग के मुताबिक श्रावण मास के संक्रांति के बाद हर सोमवार को यहां बेलपत्र की प्रदर्शनी लगाई जाती है है। बिल्वपत्र प्रदर्शनी में पुरोहित समाज के लोग हिस्सा लेते हैं जिनमें ‘जनरैल’ ‘बरनैल’ ‘बमबम बाबा’ ‘राजाराम समाज’ ‘शांति अखाड़ा’ समेत अनेकों पुरोहित समाज के लोग होते हैं। बैद्यनाथधाम (बाबाधाम) के तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य बताते हैं कि यह प्रदर्शनी बांग्ला पंचांग के मुताबिक सावन माह में संक्रांति के बाद हर सोमवार की शाम मंदिर परिसर में लगती है। दुर्लभ बिल्वपत्रों को इक्ट्ठा कर चांदी के थाल में चिपकाया जाता है और मंदिर में चढ़ाने के बाद इसे प्रदर्शनी में शामिल किया जाता है। इस प्रदर्शनी में उन्हीं बेलपत्रों को शामिल किया जाता है जिनकी खोज पुजारी समाज के लोग खुद जंगलों से करते हैं।

 

बाबाधाम में बिल्वपत्र प्रदर्शनी की परंपरा, 134 साल पुरानी

बिल्वपत्र की प्रदर्शनी बारह ज्योतिरलिंगों में से सिर्फ बैद्यनाथधाम में आयोजित की जाती है। द्वादश ज्योतिरलिंगों में से बाबाधाम का स्थान नौंवा है। तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के कल्याण एवं धर्म को जागृत करने के उद्देश्य से ऐसी प्रदर्शनी लगाई जाती है और ये सिर्फ और सिर्फ बाबाधाम देवघर में ही होता है। इस परंपरा की शुरूआत विश्व कल्याण की कामना को रखते हुए सर्वप्रथम 1883 में बमबम बाबा ब्रह्मचारी जी महाराज के द्वारा की गई थी, जिसका निर्वह्न तीर्थपुरोहित आज भी करते आ रहे हैं। इसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर – दूर से आते हैं। बिल्वपत्र की यह प्रदर्शनी अन्यत्र दुर्लभ है।

बिहार – झारखंड के जंगलों से लाए जाते हैं ये दुर्लभ  बिल्वपत्र

पुजारी प्रभाकर शांडिल्य ने बताते हैं कि बिहार – झारखंड के जंगलों में खास कर त्रिकुट पर्वत पर आज भी ऐसे कई बेल के पेड़ हैं जो दुर्लभ है। हमलोग यहीं से बेलपत्रों को इक्ट्ठा करते हैं । कई बार पुजारी समाज के लोग अनोखे बिल्वपत्र की खोज में बिहार के जमुई जिले के घने जंगलों में चले जाते हैं तो कुछ लोग झारखंड के गिरिडीह जिले के जंगलों से अनोखे बेलपत्रों को खोज कर लाते हैं जिसकी पहचान बुजुर्ग पुरोहित करते हैं। आखिरी सोमवार को सबसे अनोखे और अद्भूत बेलपत्र लाने वाले पुजारी समाज को पुरस्कृत किया जाता है। यह प्राचीन परंपरा और प्रदर्शनी श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनी रहती है। उन्होंने कहा कि यह परंपरा बहुत प्राचीन है। आपको बता दें कि देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम मंदिर का स्थान भगवान शिव के द्वादश ज्योतिरलिंगों में नौंवा है।