सोशल मीडिया में समाचार और विचार में फर्क करना मुश्किल:- प्रो. सच्चिदानंद जोशी

कोरोनाकाल में सोशल मीडिया की विश्वसनीयता का संकट और समाधान पर संगोष्ठी का हुआ आयोजन


24 मई, 2020। मोतिहारी।महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा ‘कोरोना काल में सोशल मीडिया की विश्वसनीयता का संकट और उसका समाधान’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन रविवार, 24 मई को किया गया।
वेब संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन कर रहे मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रो. अरुण कुमार भगत ने सभी प्रतिभागियों एवं वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि पत्रकारिता समाज जीवन का नियामक है। पत्रकारिता जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य है। पत्रकारिता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तीन भागों में बांटा जा सकता है- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया एवं वेब मीडिया। वेब मीडिया को न्यू मीडिया कहना सही नहीं है, क्योंकि यह माध्यम अब नया नहीं है। उन्होंने कहा कि वेब मीडिया के माध्यम से औपचारिक पत्रकारिता और अनौपचारिक पत्रकारिता की जा रही है। वेब मीडिया के माध्यम से मुख्यधारा की पत्रकारिता भी हो रही है जो औपचारिक पत्रकारिता है। औपचारिक पत्रकारिता में विश्वसनीयता होती है। लेकिन सोशल मीडिया की पत्रकारिता अनौपचारिक पत्रकारिता है, अनौपचारिक पत्रकारिता में विश्वसनीयता का संकट है। सोशल मीडिया पर अफवाहें भी फैल रही है और नागरिक पत्रकारिता भी हो रही है जिसके कारण सोशल मीडिया पर समाचार कम और विचार ज्यादा है। प्रोफ़ेसर भगत ने कहा कि पहले पत्रकार वाचडॉग की भूमिका का निर्वहन करता था लेकिन अब समाज वाचडॉग की भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

वेब संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय ,रायपुर के पूर्व कुलपति प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि सोशल मीडिया के विश्वसनीयता का प्रश्न भी सोशल मीडिया के माध्यम से खड़ी की जा रही है। सोशल मीडिया वर्तमान समय में एक तरह की शक्ति बनकर उभरी है। पहले सोशल मीडिया को कोई गंभीरता से नहीं लेता था, लेकिन अब दुनिया से अपडेट होना और वैचारिक लड़ाई लड़ने का एक बड़ा माध्यम बन गया है। सोशल मीडिया पहले युवाओं का माध्यम था। अब सोशल मीडिया सभी तबके के लोग इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया में उम्र, पद, ऊंच-नीच जैसे भाव नहीं होता है। सोशल मीडिया पर सभी मित्र होते हैं। यह एक ऐसा माध्यम है जहां हर वर्ग के लोग एक समान है। सोशल मीडिया पर यूजर्स की संख्या बढ़ने से विश्वसनीयता का संकट बढ़ता जा रहा है।पत्रकारिता हमेशा किसी नियम या नीति से बंधा होता है लेकिन सोशल मीडिया में ऐसा कुछ नहीं होता है। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया में अब नए रेगुलेशन भी आ रहे हैं। सोशल मीडिया एक तरह का लोकतांत्रिक माध्यम है। सोशल मीडिया में मार्केटिंग मैकेनिज्म आने से सोशल मीडिया को अनसोशल कर दिया है। अब यह सोशल मीडिया अनसोशल मीडिया से एंटी सोशल मीडिया बनता जा रहा है। सोशल मीडिया में पत्रकारिता और रचनात्मकता का भेद समाप्त होता नजर आता है। समाचार और विचार में फर्क करना मुश्किल हो गया है। प्रोफ़ेसर सच्चिदानंद जोशी ने सोशल मीडिया की विश्वसनीयता के समाधान पर कहा कि पांच ‘स’ – सत्य, संयम, सहनशीलता, सतचरित्रता और सौहार्द्र पर ध्यान दिया जाए तो सोशल मीडिया की विश्वसनीयता को बनाया जा सकता है।

राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने सभी वक्ताओं का आभार प्रकट करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि मीडिया अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम वर्तमान समय में प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि सामाजिक कहे जाने वाले मीडिया के असामाजिकता पर चिंतन हो रहा है यह अच्छी बात है। इस परिचर्चा में देश के कोने कोने से सैकड़ों लोग जुड़े हैं। कोरोनाकाल का सकारात्मक पक्ष भी यही है कि हम आज सोशल मीडिया के माध्यम से विचार विमर्श करना शुरू कर दिए हैं। सोशल मीडिया पर छवि निर्माण और छवि ध्वस्त करने का भी काम हो रहा है। विश्वसनीयता का संकट सोशल मीडिया पर ही नहीं बल्कि मीडिया में भी शुरू से रहा है। पीत पत्रकारिता पर पहले भी चर्चाएं होती थी और आज भी नए माध्यम में नए स्वरूप की चर्चा हो रही है।

संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर डीडी न्यूज, दिल्ली की एंकर श्रीमती मीनाक्षी श्योराण ने कहा कि कोरोना संकटकाल में सोशल मीडिया की महत्ता बढ़ी है। इस संकटकाल में हम घर बैठे सोशल मीडिया के माध्यम से घर, परिवार, समाज एवं देश से जुड़े रहे। इस बीच सोशल मीडिया पर अफवाहें भी फैली, जैसे इम्यूनिटी बूस्ट करने को लेकर बहुत सारे पोस्ट, मैसेज वायरल हुए, मजदूरों को दिग्भ्रमित करने की बात भी वायरल हुए। वहीं सोशल मीडिया के सकारात्मक पक्ष भी सामने आया। कोरोनाकाल में हर पल को सोशल मीडिया ने कैद किया है जो आने वाले समय में बड़ा गवाह बनेगा। सोशल मीडिया पर कोई पाबंदी नहीं है जिसका फायदा उठाकर कुछ लोग गलत मैसेज भी फैलाते हैं। राजनीतिक पार्टियां भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए कर रही है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से कहा कि हमें सोशल मीडिया के पोस्ट, मैसेज या वीडियो के सोर्स पर भी ध्यान देना चाहिए। सोशल मीडिया को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी गाइडलाइन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के तौर पर अमर उजाला, दिल्ली के संपादक उदय सिन्हा ने कहा कि सोशल मीडिया किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है। अखबारों में किसी सूचना या समाचार को प्रकाशित करने से पहले उसकी विश्वसनीयता देखी जाती है, लेकिन सोशल मीडिया पर ऐसा नहीं होता है। इस कोरोना संकटकाल में सोशल मीडिया का प्रसार तीन गुना बढ़ गया है। सोशल मीडिया पर तमाम तरह की फर्जी जानकारियां भी फैलाई जा रही है। सोशल मीडिया में सबसे बड़ा संकट है कि अफवाहें और सही जानकारी में फर्क करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया को अछूत नहीं माने। सोशल मीडिया के सकारात्मक पक्षों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस समय फिल्म कलाकार सोनू सूद ने जिस प्रकार सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए प्रवासी मजदूरों की मदद की है, इस पर भी हमें विचार करना चाहिए। मीडिया पर ज्यादा लाइक और कमेंट का मतलब विश्वसनीयता नहीं होता। सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों से बचने के लिए सरकारी वेबसाइट, सरकारी सोशल मीडिया साइट पर भी चेक करते रहना चाहिए। बहुत सारे लोग सकारात्मक तौर पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल शिकायत, सुझाव एवं त्वरित जानकारी के लिए भी कर रहे हैं।

इस एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी के संचालन एवं संयोजक मीडिया अध्ययन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर प्रशांत कुमार थे। सहसंयोजक एवं धन्यवाद ज्ञापन मीडिया अध्ययन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने किया। इस वेब संगोष्ठी में देश भर से लगभग 200 मीडिया जगत के अकादमिक एवं पेशवर विद्वान , शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुड़े हुए थे। संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के प्रो. राजीव कुमार, प्रो. पवनेश कुमार, प्रो. सुनील महावर, डॉ. बिमलेश कुमार सिंह सहित विभाग के प्राध्यापक डॉ. अंजनी कुमार झा, डॉ साकेत रमण, डॉ सुनील दीपक घोडके, डॉ उमा यादव एवं शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहें।