भूतभावन भगवान शंकर एवं शक्तिस्वरूपा मां पार्वती के विवाह का दिवस है महाशिवरात्रि। शिवरात्रि, शिव पर्व है शिव का होकर शिव को भजने का। 117 साल बाद इस बार महाशिवरात्रि में शनि और शुक्र का दुर्लभ योग बन रहा है। शिवरात्रि पर शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा। ये एक दुर्लभ योग है, जब ये दोनों बड़े ग्रह शिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। 2020 से पहले 25 फरवरी 1903 को ठीक ऐसा ही योग बना था और शिवरात्रि मनाई गई थी।
शिवरात्रि को शनि के साथ चंद्रमा भी रहेगा। शनि-चंद्र की युति की वजह से विष योग बन रहा है। इस साल से पहले करीब 28 साल पहले शिवरात्रि पर विष योग बना था। इस योग में शनि और चंद्रमा के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पर ये योग बनने से इस दिन शिव पूजा का महत्व और अधिक बढ़ गया है। कुंडली में शनि और चंद्र के दोष दूर करने के लिए शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है।
शिव पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट ज्योरिर्लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।चूंकि यह फाल्गुन के महीने का 14 वां दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। साथ ही हर माह में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि के बारे में एक अन्य कथा है इसके अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।
सनातन(हिन्दू) धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।
उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।
महाशिवरात्रि के दिन बाबाधाम देवघर में भक्तों का तांता लगा रहता है। देवघर में हरि और हर दोनों विराजमान हैं यानी भगवान शिव के साथ माता पार्वती साक्षात विराजमान है। शास्त्रों के मुताबिक माता सती का हृदय यहीं पर गिरा था जिस कारण देवघर को आदि देवी शक्ति का हृदय पीठ भी कहा जाता है। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से बाबा बैद्यनाथ मंदिर को मनोकामना लिंग कहा जाता है, यहां पर स्पर्श पूजा का प्रावधान है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन जो भक्त भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का दर्शन करेगा उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता माने जाते हैं। इन्हें भोलेनाथ, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि अनेकों नामों से जाना जाता है। अन्य देवों में शिव को भिन्न माना गया है और इसी तरह इनकी वेशभूषा भी सबसे अलग है। बाकी देवताओं की तरह न तो इनके सिर पर कोई मुकुट है न तन पर कोई खास तरह के आभूषण। ये संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। इनकी जटाओं में चंद्र तो मस्तक पर तीसरी आंख है। तो वहीं गले में सर्प सुशोभित है।