नई दिल्ली : दिव्यांगों के जीवन को आसान बनाने के उद्देश्य से नये उपकरणों का विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। ऐसी ही एक पहल के अंतर्गत भारतीय शोधकर्ताओं ने स्वर-बाधित लोगों के लिए ‘बोलने वाले दस्ताने’ (Talking Gloves) विकसित किए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) पर आधारित यह दस्ताना मूक और सामान्य लोगों के बीच संवाद को सुगम बनाने में उपयोगी हो सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), जोधपुर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जोधपुर के शोधकर्ताओं के संयुक्त अध्ययन में विकसित इस उपकरण की कीमत 5000 रुपये से भी कम बतायी जा रही है। यह उपकरण हाथ के संकेतों को टेक्स्ट या फिर पहले से रिकॉर्ड की गई आवाजों में बदलने में मदद कर सकता है। इसके उपयोग से दिव्यांग व्यक्तियों को अपने संदेशों को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने में मदद मिल सकती है, और वे आत्मनिर्भर जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं। इस नवाचार के लिए शोधकर्ताओं को पेटेंट भी मिला है।
यह अध्ययन, आईआईटी, जोधपुर के कम्प्यूटर साइंस एवं इंजीनीयरिंग विभाग के शोधकर्ता प्रोफेसर सुमित कालरा एवं डॉ अर्पित खंडेलवाल और एम्स, जोधपुर के शोधकर्ता डॉ नितिन प्रकाश नायर (वरिष्ठ ईएनटी), डॉ अमित गोयल (प्रोफेसर एवं प्रमुख, ईएनटी) तथा डॉ अभिनव दीक्षित, (प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग) द्वारा किया गया है।
प्रोफेसर सुमित कालरा ने कहा, “यह उपकरण लोगों को आज के वैश्विक युग में बिना किसी भाषिक बाधा के मुख्यधारा में वापस लाने में सक्षम है। इस उपकरण के उपयोगकर्ताओं को केवल एक बार सीखने की जरूरत होगी, और वे अपने ज्ञान के साथ किसी भी भाषा में मौखिक रूप से संवाद करने में सक्षम होंगे। इस उपकरण को व्यक्ति की मूल आवाज के समान ध्वनि उत्पन्न करने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, जो इसके उपयोग को अधिक सहज बनाता है।”
कोई पूर्व बीमारी या फिर चोट भी कई मामलों में मौखिक रूप से संवाद करने की प्राकृतिक क्षमता से वंचित कर देती है। सांकेतिक भाषा उन रोगियों के लिए संवाद का एक तरीका हो सकती है, जो बोलने में असमर्थ हैं। हाल के वर्षों में, लाइफ सपोर्ट के लिए इलेक्ट्रो-मेडिकल उपकरण, इम्प्लांटेबल बायोमेडिकल उपकरण और वीयरेबल मेडिकल उपकरण के क्षेत्र में तकनीकी प्रगति हुई है, जिससे शारीरिक अक्षमता दूर करने से संबंधित कृत्रिम क्षमताएं प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। आईआईटी, जोधपुर और एम्स, जोधपुर के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एवं पेटेंट कराया गया नवाचार इस क्षेत्र में हो रही प्रगति की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस उपकरण को उपयोगकर्ता हाथ के अंगूठे, उंगली और/या कलाई के संयोजन पर पहन सकता है। उपकरण में लगे सेंसर के पहले सेट द्वारा विद्युत संकेत उत्पन्न होते हैं। विद्युत संकेत उंगलियों, अंगूठे, हाथ और कलाई की गति के संयोजन से उत्पन्न होते हैं। इसी तरह, दूसरी ओर सेंसर के दूसरे सेट द्वारा भी विद्युत संकेत उत्पन्न होते हैं। ये विद्युत संकेत सिग्नल प्रोसेसिंग यूनिट में प्राप्त होते हैं। प्राप्त विद्युत संकेतों के परिमाण की तुलना सिग्नल प्रोसेसिंग यूनिट का उपयोग करके मेमोरी में संग्रहीत परिमाणों के पूर्व-निर्धारित संयोजनों की बहुलता से की जाती है। एआई और एमएल एल्गोरिदम का उपयोग करके विद्युत संकेतों के इन संयोजनों को कम से कम एक व्यंजन और एक स्वर के अनुरूप ध्वन्यात्मकता में रूपांतरित किया जाता है।
एक ऑडियो सिग्नल ऑडियो ट्रांसमीटर द्वारा उत्पन्न होता है, जो निर्दिष्ट ध्वनि के अनुरूप होता है और मशीन लर्निंग यूनिट में संग्रहीत मुखर विशेषताओं से जुड़े विशिष्ट डेटा पर आधारित होता है। स्वर एवं व्यंजन के संयोजन वाली ध्वन्यात्मकता के अनुसार श्रव्य संकेतों की उत्पत्ति स्पीच निर्माण की ओर ले जाती है और मूक लोगों को दूसरों के साथ संवाद करने में सक्षम बनाती है। स्पीच संश्लेषण तकनीक ध्वन्यात्मकता का उपयोग करती है, और इसीलिए स्पीच निर्माण किसी भी भाषा विशेष की बाध्यता से स्वतंत्र है।
इस उपकरण के संबंध में जारी आईआईटी, जोधपुर के वक्तव्य में कहा गया है कि टिकाऊपन, वजन, प्रतिक्रिया और उपयोग में आसानी जैसी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए शोधकर्ता आगे काम कर रहे हैं। आईआईटी, जोधपुर द्वारा इनक्यूबेट किए गए स्टार्टअप के माध्यम से इस उपकरण की तकनीक का व्यावसायीकरण किया जाएगा। साभार (इंडिया साइंस वायर)