आजकल तो शेर-शायरी का मन है। देश के अजीमोशान…मरहब्बा टाईप युनिवर्सिटी जेएनयू के अध्यक्ष रहे कन्हैय्या कुमार ने मुनव्वर राणा को टक्कर दी है। “बिहार से तिहाड” लिखने के बाद पेश-ए-खिदमत है शायर लाल-बुझक्कड….माफ कीजियेगा लाल-पार्टी के लाडले..टुकडे टुकडे वाली आजादी के प्रतीक कन्हैय्या कुमार। कविश्रेष्ठ अपनी युनिवर्सिटी में लिखे पढे का मान रखते हुए फरमाते हैं….दाद अवश्य दीजियेगा कि – “अर्ज़ किया है- बाग़ों में बहार है/ बौखलाया तड़ीपार है/ साहेब बेक़रार हैं/ झूठ बेशुमार है। क्यों? क्योंकि देश के हर कोने में अब शाहीन बाग़ तैयार है।”……गज्जब।
फन्ने खां के पास बीस ट्रक हैं लेकिन मजाल है कभी “तेरह के फूल सत्रह की माला, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।” या “हंस मत पगली, प्यार हो जायेगा” से आगे बढ पाये हो। कन्हैय्या पढे लिखे हैं। पढे लिखों की शायरी अलग होती है, एक दम टिपटॉप। कन्हैय्या कुमार का जो शेर हमने सुनाया वह एक्सक्लूजिव है किसी ट्रक-टैम्पू के पीछे अभी तक लगाया नहीं जा सका है। इस लिये ब्रेकिंग शेर पर बात कर लेते हैं वरना तो फन्नेखां ने नया ट्रक खरीदा है, सुन लिया तो यही शेर चेंप सकते हैं। “हम क्या चाते आझादी” पर पैरोडी नहीं बल्कि मौलिक शेर लिखने के लिये कन्यैया कुमार को देश भर के वामपंथियों से बधाई मिल रही है। कोई उन्हें पाश का पुनर्जन्म तो कोई मुक्तिबोध की परम्परा का महाकवि बता रहा है।
बड़े बड़े लोगों की नकल होने लगती है, अच्छी बात नहीं। कन्हैयाकुमार ने अपनी कविता, शायरी, नज्म, गजल आप जो भी समझे…..क्योंकि मुझ नाचीज की समझ से परे था….ट्वीट की। उसके बाद तो इस तुक पर लोगों के इतने तुक मिलाये कि “ताल से ताल मिलाओ” गाना लिखने वाले को भी कॉपीराईट का ईश्यू हो गया। एक से बढ कर एक शायरी। कुछ का आप भी लुत्फ उठाईये। गजब क्रियेटिविटी प्रदर्शित करते हुए वी के ठाकुर लिखते हैं – बागों में बहार है/ बौखलाया कन्हैया कुमार है/टुकडे टुकडे गैंग बेकरार है/ क्यों? क्योंकि/ देश के हर कोने में अब जनता तैयार है। मयूर जरा शत्रुघन सिन्हा वाली ईस्टाईल में लिखते हैं – अर्ज किया है/ अलगाववादियों का तू जमाई है/ साथ वाशिंगटन पोस्ट वाली भैजाई है/ ट्विटर पर जितना बकना है बक ले छोटे/ शाहीन बाग तो दूसरा बेगूसराई है। एक शायर अरुण सिंह तो जरा दूजे किस्म के तुकक्कड हैं लिखते हैं – हर शाहीनबाग उजाडे जायेंगे/ हर गद्दार मिटा दिये जायेंगे/ जिस डाल पे उल्लू बैठें हों/ वो डाल गिरा दिये जायेंगे। तो जनाब-ए-आला, कन्हैय्या कुमार के शायराना ट्वीट पर शेरो-शायरी की जो बरसात हुई है उसके कुछ नजराने पेश-ए-खिदमत थे। भाई फन्ने खां सीएए के सपोर्टर हो तो कन्हय्या वाली लाल रंग से ट्रक के पीछे पुतवा लेना नहीं हो तो पैरोडी में से कोई धांसू वाली छांट लेना। जो भी लिखवाओ उसे लाजिम है कि हम भी देखेंगे।
हमने तो सुना था कि शाहीनबाग क्रियेटिविटी का अड्डा बना हुआ है। कन्हैया कुमार की शायरी से यकीन आ गया। किसी की बाप का शायरी पर एकाधिकार थोडी है, हमने भी दो चार पंक्तियाँ आगे जोडी हैं, “अर्ज़ किया है- “माओ की दूकान है। फीका पकवान है। शाहीन बाग दिखता है, अब झूठ नहीं बिकता है। क्यों? क्योंकि झूठ के पंख तुड मुड गये हैं। सलामों के लाल रंग उड गये है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं )