भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ मंदिर, देवघर सभी ज्योतिर्लिंगों से भिन्न है । यहां पर सकल मनोरथ पूर्ण करने वाला कामना ज्योतिर्लिंग स्थापित है । बाबाधाम मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि किसी भी द्वादश ज्योतिर्लिंग की तरह यहां के मंदिर पर ‘त्रिशुल नहीं’, बल्कि पंचशूल है । कहा जाता है कि बाबा बैद्यनाथ मंदिर के सिवाय किसी भी शिवालयों के शिखर पर पंचशूल नहीं है । पंचशूल के पीछे कई कहानियां छिपी हुई है । पंचशूल के विषय में धर्माचार्यों के अलग – अलग मत है । मान्यता है कि यह त्रेता युग में त्रिलोक विजयी रावण की लंका के बाहर सुरक्षा कवच के रूप में स्थापित था ।
पंचशूल के बारे में बाबा बैद्यनाथ धाम के पीठाधीश सरदार पंडा बताते हैं कि पंचशूल मानव शरीर में मौजूद पांच विकार – काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या को नाश करने का प्रतीक है। पंचशूल पंचतत्त्वों क्षिति, जल, पावक एवं समीर से बने मनुष्य के शरीर का द्योतक है । सरदार पंडा की मानें तो बाबाधाम आने वाले श्रद्धालु अगर बाबा का दर्शन किसी कारणवश न कर पाये हों तो पंचशूल के दर्शन मात्र से ही उसे समस्त पुण्यफलों की प्राप्ति हो जाती है । उन्होंने बताया कि बाबा मंदिर के स्वर्णकलश के ऊपर स्थापित पंचशूल सहित यहां के सभी 22 मंदिरों में स्थापित पंचशूलों को वर्ष में एक बार शिवरात्रि के दिन मंदिर के शिखर से नीचे लाया जाता है तथा सभी को विधिवत एक निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा-अर्चना के बाद फिर से मंदिर के शिखर पर स्थापित कर दिया जाता है । इस पूजा को देखने के लिए देश-विदेश से भक्त आते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं कि मंदिर पर चढ़कर कोई भी पंडित या पुजारी पंचशूल को उतार सकता है । पंचशूल को मंदिर से उतारकर नीचे लाने और पुनः ऊपर स्थापित करने के लिए एक ही परिवार के लोगों को मान्यता मिली हुई है और उसी परिवार के सदस्य यह काम करते हैं ।
पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री और बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित दुर्लभ मिश्र की मानें तो ” धार्मिक ग्रंथो में कहा गया है कि देवाधिदेव महादेव ने अपने प्रिय शिष्य शुक्राचार्य को पंचवक्त्रम निर्माण की विधि बताई थी, जिनसे रावण ने इस विद्या को सिख लिया था । पंचशूल अजेय शक्ति प्रदान करता है । रावण को पंचशूल के सुरक्षा कवच को भेदना आता था, जबकि इस कवच को भेदना भगवान राम के भी वश में भी नहीं था । बाद में विभीषण द्वारा इस रहस्य की जानकारी प्रभु श्रीराम को दी गई और तब जाकर अगस्त मुनि ने पंचशूल ध्वस्त करने का विधान बताया था जिसके बाद ही राम और उनकी सेना लंका में प्रवेश कर सकी थी। रावण ने उसी पंचशूल को इस मंदिर पर लगाया था, ताकि इस मंदिर को कोई क्षति नहीं पहुंचा सके । सुरक्षा कवच के कारण ही बाबा मंदिर पर आज किसी भी प्राकृतिक आपदा का असर नहीं हुआ है ।”
तीर्थ पुरोहित प्रभाकर शांडिल्य बताते हैं कि महादेव का प्रिय मंत्र ‘ऊँ नमः शिवाय’ है जो पंचाक्षर है भगवान शिव का रूद्र रूप भी पंचमुख है और बैद्यनाथधाम मंदिर के शिखर पर भी पंचशूल है, जो अन्य दुर्लभ है । उन्होंने कहा कि मुख्य मंदिर के ऊपर लगे पंचशूल समेत यहां के सभी बाइसों मंदिरों पर लगे पंचशूलों को शिवरात्रि के पुण्य अवसर पर नीचे उतारा जाता है एवं सभी को निश्चित स्थान पर रखकर विशेष पूजा कर फिर से वहीं स्थापित कर दिया जाता है । इस दौरान शिव और पार्वती के मंदिरों के गठबंधन को भी हटा दिया जाता है । लाल कपड़े के दो टुकड़ों में दी गई गांठ खोल दी जाती है और महाशिवरात्रि को पुनः नया गठबंधन किया जाता है । गंठबंधन वाले पुराने लाल कपड़े को दो टुकड़ों को पाने के लिए हजारों भक्त इक्ट्ठे होते हैं ।
गौरतलब है कि बैद्यनाथ धाम मंदिर के प्रांगण में विभिन्न देवी-देवताओं के 22 मंदिर हैं । मंदिर के बीचोंबीच प्रांगण में भव्य 72 फीट ऊंचा भगवान शिव का मंदिर है । इसके अतिरिक्त प्रांगण में अन्य 22 मंदिर स्थापित हैं । मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है ।