लोकसभा चुनाव में अब कुछ महीने ही शेष रह गए हैं। झारखंड में महागठबंधन के बीच सीटों का बंटवारा भी अब अंतिम चरण में है. विश्वस्त सूत्रों की मानें तो झारखंड में कांग्रेस छह सीटों पर,चार सीटों पर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, दो सीट पर झारखण्ड विकास मोर्चा और एक एक सीट पर वाम दल और राष्ट्रीय जनता दल चुनाव लड़ेगी। महागठबंधन में कांग्रेस को रांची ,धनबाद लोहरदग्गा, चतरा ,चाईबासा और जमशेदपुर से वहीं झामुमो को दुमका, राजमहल, खूंटी और गिरिडीह सीट मिलने की संभावना है। गोड्डा और कोडरमा से झाविमो के उम्मीदवार का उम्मीदवार उतारे जाने की संभावना है। हजारीबाग से वामदलों का संयुक्त प्रत्याशी और पलामू से राजद के उम्मीदवार का महागठबंधन से आना तय लग रहा है। दिसम्बर के अंत तक लगभग महागठंबधन की समन्वय समिति बन जाने की संभावना है। कांग्रेस की तीन राज्यों में अप्रत्याशित विजय के बाद अब झारखंड में बड़े भाई की भूमिका पर पुनर्विचार की स्थिति बन रही है। लगभग छह माह पहले दिल्ली में हुई विपक्ष के नेताओं की बैठक में लोकसभा के लिए कांग्रेस तो विधानसभा के लिए झामुमो को बड़ा भाई माना गया था। अब परिस्थितियां बदलने लगी है। राजस्थान छतीसगढ़ और मध्य प्रदेश की विजय ने भले ही भाजपा विरोधी सभी दलों को संजीवनी दी हो पर कांग्रेस के साथ उनके मोलभाव का स्तर घटा दिया है।
बहरहाल, महागठबंधन सारे विवाद अभी ही सुलझा लेने के पक्ष में है वहीं भाजपा इनके बीच फुट का इंतजार कर रही है। हालिया घटनाक्रम पर अगर गौर करें तो कोलेबिरा उपचुनाव में झामुमो ने झारखंड पार्टी की उम्मीदवार मेनोन एक्का को समर्थन दिया है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदवार नमन विक्सल कोंगाड़ी को झाविमो और राजद का समर्थन प्राप्त हुआ है। झामुमो के महागठबंधन में सम्मिलित पार्टियों से अलग राय बनाने का सिलसिला शुरू हो गया है। एक ओर जहां झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार महागठबंधन में समन्वय बिठाने के प्रयास में हैं वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सिल्ली गोमिया और लिट्टीपाड़ा उपचुनाव जीतकर अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश में हैं। झारखण्ड में महागठबंधन के जिस स्वरूप की बात हो रही उसकी बनने के आसार तो हैं पर धरातल पर इसमे शामिल दलों का समन्वय मुश्किल सा प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए अगर हम चतरा लोकसभा की बात करें तो बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप के करीबी सुभाष प्रसाद यादव यहां खुद को राजद भावी उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं। झारखण्ड विकास मोर्चा से पिछली बार दूसरे स्थान पर रही नीलम देवी की भी अपनी दावेदारी है। कांग्रेस से भी यहां पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी के चुनाव लड़ने की चर्चा है। इन्ही तीन पार्टियों में कई और ऐसे टिकटार्थियों की दिल्ली आवाजाही बढ़ रही है। जबकि सम्भावित सीट शेयरिंग के फार्मूले के आधार पर यह सीट कांग्रेस के पाले में जाने की संभावना है। इस हालत में इन शेष उमीदवारों को मनाना महागठबंधन के लिए आसान काम नही होगा। सूत्रों की माने तो 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के द्वारा अपनाई गई रणनीति के सम्मिलित दलों के सबसे मजबूत उम्मीदवार को टिकट दिया जा सकता है। इस हालत में दूसरी पार्टी से आए उम्मीदवार को समान्य कार्यकर्ताओं के लिए पचा पाना आसान नही होगा। कमोबेश यही स्थिति राज्य के सभी सीटों पर होने वाली है। महागठबंधन में सम्मिलित होने वाले सभी दल इस बात को समझ रहे हैं कि उनके कार्यकर्ताओं को सिर्फ भाजपा विरोध का शिगूफा ही एक मंच पर ला सकता है। इस हेतु उनको जल्द से जल्द सीट शेयरिंग के मुद्दे को सुलझा कर सम्भावित उम्मीदवारों को कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय बनाने के लिए समय देना चाहिये।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)