खेल के वैश्विक स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना और उस मौके को पदकों में तब्दील करना, यही एक खिलाड़ी का लक्ष्य होता है। भारतीय खिलाड़ियों ने जकार्ता एशियन गेम्स में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर पदक जीतने की प्रतिबद्धता को साबित भी किया है। भारतीय खिलाड़ियों ने अपने हौसलों के बल पर 137 करोड़ भारतीयों की उम्मीदों को परवाज देते हुए 67 साल पुराने रिकॉर्ड की बराबरी की।
एशियाई खेलों के 18वें संस्करण में भारत की तरफ से 572 खिलाड़ियों का अब तक का सबसे बड़े दल जकार्ता गया था, जिसने न सिर्फ पदकों की गिनती बढ़ाई बल्कि हार नहीं मानने के उनके जज्बे ने देश का मान भी बढ़ाया। इस खेल आयोजन में 34 खेलों में अपनी भागीदारी निभाने के बाद आए परिणाम की बात करें तो इसमें भारत के लिए खुशी और गम दोनों हैं। खुशी इसलिए कि ग्रामीण अंचलों की प्रतिभाएं विश्व पटल पर सोने की तरह चमकीं। जबकि दुख इस बात का कि जिन खेलों में तथा जिन हस्तियों से ज्यादा उम्मीद थी, उन्होंने निराश किया।
16 दिनों तक चले इस एशियन गेम्स में भारतीय दल ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य के साथ कुल 69 पदक अपने नाम किए। साथ ही भारत ने वर्ष 2010 के एशियन गेम्स में जीते स्रर्वाधिक 64 पदकों को भी पीछे छोड़ा। वहीं, 15 स्वर्ण पदक जीतकर हमारे खिलाड़ियों ने 67 साल पुराना इतिहास भी दोहराया। खेल के इस महाद्विपीय मुकाबले में यह दूसरा मौका रहा जब भारत ने 15 स्वर्ण पदक हासिल किए। इससे पहले, नई दिल्ली में आयोजित हुए प्रथम एशियन गेम्स-1951 में भारतीय खिलाड़ियों ने 15 स्वर्ण जीते थे।
एशियन गेम्स-2018 में भारत के लिए सबसे ज्यादा गर्व के पल एथलेटिक्स ने दिए। यहां कई स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ियों ने उम्मीद से बेहतरीन प्रदर्शन किया। जिसका परिणाम यह रहा कि भारतीय दल ने सात स्वर्ण के साथ 10 रजत और दो कांस्य समेत कुल 19 पदक जीते। भारतीय एथलीट जिनसन जॉनसन ने पुरुषों के 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। जबकि मनजीत सिंह ने पुरुष 800 मीटर में 01 मिनट 46.15 सेकेंड का समय निकाल कर सोना जीता। पुरुष शॉटपुट में तेजिंदरपाल सिंह तूर ने 20.75 का थ्रो कर नेशनल रिकॉर्ड बनाते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। साथ ही, गेम्स के उद्घाटन समारोह में भारत के ध्वजवाहक रहे जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने 88.06 मीटर भाला फेंककर सोने पर कब्जा जमाया। ट्रिपल जम्प में अरपिंदर सिंह ने 48 साल बाद भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। इससे पहले 1970 में मनिंदर पाल सिंह ने एशियन गेम्स में सोना जीता था।
एथलेटिक्स में भारतीय महिलाओं का प्रदर्शन भी शानदार रहा। महिलाओं के 4 गुणा 400 मीटर रिले रेस में भारत को स्वर्ण पदक मिला। इसके लिए हिमा दास, पूवम्मा राजू, सरिताबेन गायकवाड़ और विसमाया वेलुवाकोरोथ की चौकड़ी ने 3 मिनट 28.72 सेकेंड का समय निकाला। इस दौरान, भारतीय महिला टीम .05 सेकेंड के अंतर से गेम रिकॉर्ड बनाने से चूक गई। वहीं, 21 साल की स्वप्ना बर्मन ने हेप्टाथलॉन मे इतिहास रचते हुए गोल्ड मेडल जीता। इसके साथ स्वप्ना हेप्टातलॉन में भारत के लिए सोना जीतने वाली पहली खिलाड़ी भी बन गईं।
इसके अतिरिक्त, कुछ महिला धावकों को थोड़े अंतर से रजत पदक से संतोष करना पड़ा। इसमें पहला नाम दुती चंद का है, जिन्होंने 100 मीटर एवं 200 मीटर दोनों स्पर्धा में दूसरा स्थान हासिल किया। वहीं, हिमा दास ने 400 मीटर दौड़ के अलावा, 4 गुणा 400 मीटर मिश्रित रिले में भी रजत पदक प्राप्त किया। एथलीट सुधा सिंह ने महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज स्पर्धा में 40.03 सेकेंड का समय लेकर रजत पदक हासिल किया। यह उनका एशियाई गेम्स में दूसरा पदक रहा।
शूटिंग स्पर्धाओं में भी भारत को पदक की उम्मीदें काफी थीं, मगर भारतीय निशानेबाज उस पर खरा नहीं उतर सके। निशानेबाजी में भारत के खाते में दो स्वर्ण, चार रजत और तीन कांस्य के साथ कुल नौ पदक रहे। महज 16 साल के सौरभ चौधरी ने 10 मीटर एयर पिस्टल में विश्व और ओलंपिक चैंपियनों को पछाड़ते हुए एशियन गेम्स के स्वर्ण जीता। जबकि राही जीवन सरनाबोत ने 25 मीटर पिस्टल इवेंट में सोने पर निशाना लगा एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला निशानेबाज बनीं।
कुश्ती में भारत का प्रदर्शन निराशाजनक रहा और भारतीय पहलवान सिर्फ दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक ही जीत पाए। हरियाणवी पहलवान बजरंग पूनिया ने 65 किग्रा. वर्ग के फाइनल में जापान के दाएची ताकातानी को हराकर स्वर्ण पदक जीता। जबकि दूसरा गोल्ड महिला पहलवान विनेश फोगाट ने 50 किग्रा. वर्ग के फाइनल में जापान की युकी इयारी को हराकर जीता। इसके साथ विनेश एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान भी बनीं।
ताश के पत्तों वाले खेल ‘ब्रिज’ में भी भारतीय झोली में स्वर्ण पदक आया। प्रणब बर्धन और शिबनाथ सरकार ने पुरुषों की ब्रिज (ताश) कपल इवेंट का गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इसके साथ 60 साल के प्रणब वर्धन ने सबसे उम्रदराज खिलाड़ी के तौर पर स्वर्ण जीतने का भी रिकॉर्ड बनाया। वहीं, भारत ने एशियन गेम्स के रोइंग (नौकायन) स्पर्धा में पुरुषों की क्वाड्रपल स्कल्स टीम इवेंट में स्वर्ण सिंह, भोनाकल दत्तू, ओम प्रकाश और सुखमीत सिंह की टीम ने सोना जीता। रोइंग में अन्य मुकाबलों में भारत को दो कांस्य पदक भी मिले।
टेनिस में भी भारत ने एक स्वर्ण और दो कांस्य के साथ कुल तीन पदक हासिल किए। रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की जोड़ी ने पुरुष युगल के फाइनल में कजाकिस्तान की जोड़ी को हराकर गोल्ड जीता। वहीं, टेनिस में पुरुष एकल एवं महिला एकल मुकाबले में भारत को कांस्य पदक मिला। मुक्केबाजी (बॉक्सिंग) के खेल में भारतीय उम्मीदों को जरूर झटका लगा। भारत दल मुक्केबाजी में मात्र एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक ही जीत पाया। बॉक्सर अमित पंघल ने पुरुषों के 49 किलो वर्ग इवेंट उज्बेकिस्तान के हसनबॉय दुसामाटोव को 3-2 से हराकर गोल्ड पर कब्जा जमाया। वहीं, 75 किग्रा वर्ग में विकास कृष्णन ने कांस्य पदक प्राप्त किया।
इनके अतिरिक्त, तीरंदाजी और घुड़सवारी में भी भारत को दो-दो रजत पदक मिले। स्क्वॉश की विभिन्न स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ियों को एक रजत और चार कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। सेलिंग में भारतीय खिलाड़ियों ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। वहीं, बैडमिंटन, हॉकी, कबड्डी और कुराश में भारतीय उम्मीदों को एक रजत, एक कांस्य के साथ कुल दो-दो पदक से संतोष करना पड़ा। जबकि वुशू के खेल में भारतीय खिलाड़ियों ने अप्रत्याशित प्रदर्शन कर सबको चौंकाया। वुशू में भारत को कुल चार कांस्य पदक हासिल हुए। टेबल टेनिस की विभिन्न स्पर्धाओं में भारतीय दस को दो कांस्य पदक ही अर्जित कर पाया।
इस एशियन गेम्स की खासीयत यह रही कि भारतीय खिलाड़ियों ने अपने संघर्षों के बल पर पदक तक का रास्ता बनाया। कुछ खेल तो ऐसे रहे जो भारतीय माहौल में परम्परागत नहीं हैं, बावजूद इसके भारतीय खिलाड़ियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। वहीं, कुछ ऐसे भी मौके रहे जब थोड़े-थोड़े अंतर से खिलाड़ियों को पदक नहीं मिले लेकिन उन्होंने खेल के वैश्विक स्तर पर यह अहसास जरूर कराया कि उनकी नींव पक्की है और भविष्य में पदक भी आएंगे।