आजमगढ़। कोविड-19 (कोरोना वायरस) महामारी ने मानव जीवन के समक्ष विकट स्थिति पैदा कर दी है। ऐसे में दिन-रात एककर शहर से गांव व कस्बों तक लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाने वाले कोरोना योद्घाओं की जितनी प्रशंसा की जाए कम हैं। इस क्रम में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य संयोजक की जिम्मेदारी निभाने वाले आशा कर्मी सही मायने में हीरो बन कर उभरे हैं।
कोरोना संकट काल में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आशा कार्यकर्ता ही उम्मीद की वो किरण हैं, जिनके बलबूते समाज सुरक्षित भविष्य का सपना संजों पा रहा है। जागरुकता और सुरक्षा के अपने ध्येय वाक्य के साथ आशा कार्यकर्ता ग्राम निगरानी समितियों के माध्यम से गांवों को लौटे प्रवासी मजदूरों को होम क्वारेंटाइन करने में लगे हैं। इन सभी प्रवासियों से घरों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने तथा 21 दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत होती है। निर्देशों को बखूबी पालन हो इसका ध्यान भी आशा कर्मी रखते हैं। साथ ही जुखाम-बुखार आने पर पैरासिटामॉल लेने तथा विशेषज्ञों से संपर्क करने की सलाह दी जा रही है।
आज पूरा समाज जहां कोविड-19 को बड़ी आपदा के रूप में देख रहा है, वहीं लोगों की उम्मीद से भरी नजरें आशा कार्यकर्ताओं की तरफ हैं। सभी को पता है कि एक जिम्मेदार स्वास्थ्यकर्मी के रूप में ये आशा कार्यकर्ता ही उनकी जीवन की सुरक्षा की एकमात्र डोर हैं। आशा कार्यकर्ताएं अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझ रहीं हैं, तभी तो आजमगढ़ जिले में 2543 स्वच्छता समितियों के माध्यम से ग्रामवासियों को बीमारी के बारे में जागरूक करने का कार्य लगातार किया जा रहा है। लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व समझाने के साथ उनमें मास्क, ग्लब्स और सैनेटाइजर का वितरण भी हो रहा है। आशा कर्मियों की तत्परता के कारण प्रवासियों को ब्लॉक स्तर पर मेडिकल सुविधाएं भी मिल रही हैं। यहीं नहीं ग्राम प्रधान के साथ मिलकर प्रवासियों के लिए राशन की व्यवस्था भी आशा कार्यकर्ता ही सुनिश्चित कर रहे हैं। प्रवासियों के अलावा गावों में भी किसी प्रकार की जरूरत का ध्यान ये कार्यकर्ता रखने में लगे हैं। तमाम आपा-धापी के बीच आशा कार्यकर्ता लोगों को बचाने के साथ खुद का बचाव भी कर रही हैं ताकि कहीं किसी प्रकार की चूक की कोई गुंजाइश ना हो।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला सामुदायिक प्रक्रिया प्रबंधक (डीसीपीएम) विपिन बिहारी पाठक ने बताया वायरस संक्रमण से बचाव को लेकर देशभर में जारी लॉकडाउन के बीच जिले के 12,000 गांव में 75 हजार से अधिक लोगों को आशा कार्यकर्ता मास्क और सैनेटाइजर बांट चुकी हैं, जबकि प्रधान और आशाकर्मियों के सहयोग से अब भी लोगों में सुरक्षा उपकरणों का वितरण किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय और चिकित्सा विशेषज्ञों की ओर से स्पष्ट निर्देश है कि सतर्कता और सावधानियों को अपनाकर कोरोना वायरस से बचाव किया जा सकता है। ऐसे में हर तरह के सुरक्षात्मक कदम को प्रभावी बनाने में आशा कार्यकर्ता लगे हुए हैं।
कोई स्पष्ट आंकड़ा तो नहीं है लेकिन समाचार व रिपोर्ट से पता चला है कि आजमगढ़ में लगभग 35 हजार प्रवासी मजदूर पंजीकरण के माध्यम से पहुंच चुके हैं। इनकी जांच रेलवे और बस स्टेशन पर मेडिकल टीम ने की है, जबकि 45 हजार लोग निजी वाहनों तथा ट्रकों आदि की मदद से जिले में पहुंच चुके हैं। ऐसे में निजी साधनों से पहुंचने वाले लोगों की मेडिकल जांच को लेकर ग्राम निगरानी समितियां तत्पर हैं। हालांकि कुछ ऐसे भी लोग हैं जो ग्राम निगरानी समितियों के नियमों की परवाह नहीं कर रहे, जिससे संक्रमण का डर बन रहा है। बावजूद इसके आशा कर्मी अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए नियमों की परवाह न करने वालों को भी सुरक्षित रखने की अपनी जिम्मेदारी को निभा रहे हैं।
वर्तमान में वायरस संक्रमण से हर इंसान डरा हुआ है, ऐसे में सच्चे योद्धा की तरह आशा कार्यकर्ता मोर्चा संभाले हुए हैं। फ्रंटलाइन वॉरियर्स की भूमिका में आशाकर्मी लगातार अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लगे हैं। अब समाज की बारी है कि वो इनके हौंसलों का सम्मान करें और बचाव के कार्यों में अपनी जिम्मेदारी को भी समझे।