कहते हैं राजनीति में न तो कोई दोस्त होता है और न दुश्मन…समय समय की बात होती है। सही समय पर खेला गया सही दांव आपका भविष्य तय करता है और उसी दांव के सबसे माहिर खिलाड़ी नीतिश कुमार हैं। कभी – कभी तो लगता है कि नीतीश भी नहीं जानते वो क्या करने वाले हैं और कब, कैसे करेंगे।
खैर मानता हूं, उतना विकास नहीं हुआ जितनी उम्मीद थी पर क्या भूल गए कभी शाम ढलते ही घरों के दरवाजे बंद हो जाते थे। अगर आपात स्थिति में भी निकलना हो तो यही समझते थे कि आज तो छीन-झपट होना तय है।
दिनदहाड़े हत्या,चोरी,डकैती आम बात थी। अपहरण का उद्योग चरम पर था । तब फ़ोन का जमाना नहीं था। घर से निकलने पर जब तक वापस घर न आओ, घर वाले बेचैन रहते थे।
मैंने देखा है उस दौर को… जब शाम ढलते ही दूकानों के शटर गिर जाते थे। रंगदारी न देने पर मार दिया जाता था।
बिहार आज बहुत आगे जा चुका है। अब तो पूरी रात घूमो कोई नहीं पूछेगा ?
30 साल पीछे गए बिहार को पटरी पर लाना इतना आसान था क्या?
जिन सड़कों पर गड्ढे होते थे, वो सड़क आज ऐसी हो गयी है जैसी लालू ने कल्पना की थी, हेमा मालिनी की गाल ।
मानता हूं जितना विकास होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ परंतु बीमारू राज्य को वाकई बिहार तो नीतिशे कुमार ने ही बनाया।
नीतिश का अपना क्या है? कुछ नहीं…सादगी में जीने वाला इंसान है । जिस जाति से वो आते हैं उसकी संख्या बिहार में इतनी भी नहीं है कि विधानसभा की 10 सीट भी जीता दे पर नीतिश 15 साल से सीएम हैं।
हां कुछ गलतियां हुईं सब से होती हैं, इंसान ही तो हैं। पर समय रहते उन गलतियों का प्रायश्चित किया गया जैसे- लालू से नाता तोड़ना।
नीतिश को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि नीतिश ही एकमात्र वो नेता हैं जिनके सामने विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष नेता भी नीतिश के इशारे पर चलते हैं। सफाई देते हुए नीतिश को ही नेता बनाते हैं।
शराबबंदी की आलोचना हो सकती है मैं भी करता हूँ। परंतु बिहार की सड़के सुरक्षित भी इसी वजह से हुई हैं।
इलजाम लगते हैं कि नीतीश ने सिर्फ नालंदा का विकास किया पर ये तो बताओ लालू जी ने ट्रेन नहीं पहुचाई अपने गांव तक। मोदी पीएम बनने के बाद गुजरात को भूल गए? नहीं न?
मैं दूर दूर तक देखता हूं तो बिहार में तो ऐसा कोई नेता नज़र नहीं आता जो मुख्यमंत्री बनने के लायक हो, चाहे वो किसी भी पार्टी का हो।
मैं अक्सर कहता हूं नीतिश अगर किसी राष्टीय पार्टी के नेता होते तो पीएम होते। राजनीति का मतलब अगर माहिर होना है तो नीतिश कुमार उसके नज़ीर हैं।
(लेखक राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में टेलीविजन पत्रकार हैं)