प्रकृति के गोद में बसे झुमराज स्थान में दूर-दराज से भक्त आते हैं, कहा जाता है कि सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ जो भक्त यहां पर आते हैं बाबा झुमराज उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। बाबा झुमराज शिव के अन्नय भक्त थे, वर्ष 1800 में प्रयागराज से जल लेकर वे बाबाधाम जलार्पण के लिए आ रहे थे। बटिया जंगल के समीप जहां पर आज उनकी पिंडी बनी हुई वहां पर विश्राम के लिए रूके हुए थें, विश्राम के दौरान जंगली जानवर शेर के हमले से उनकी मृत्यु हुई। मान्यता है कि मृत्यु के पश्चात उनकी आकाशवाणी हुई और भक्तों जिसे टिकैत कहा जाता है, द्वारा मृत्युस्थल पर ही उनकी पिंडी बना दी गई और पूर्जा अर्चना की शुरूआत की। यह स्थल अब झुमराज स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
झारखंड के सीमांत जिले (जमुई) में अवस्थित झुमराज स्थान का नाम तो आपने सुना ही होगा, मान्यता है कि यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। झुमराज बाबा के नाम से प्रसिद्ध यह उपासना स्थल जमुई(बिहार) जिले के सोनो प्रखंड के अंतिम पूर्वी छोर पर अवस्थित है। यह बटिया पहाड़ से सटे गुफा एवं बर्नर जलाशय के करीब है, बटिया आज भी झारखंड एवं बिहार की सड़कों को जोड़ता है। झुमराज स्थान घोर निर्जन जंगल,पहाड़ो की तराई और गुफा की अलौकिक सौन्दर्यता के बीच मे अवस्थित है। इस स्थान पर दूर-दूराज से भक्त आते हैं और बाबा झुमराज का दर्शन कर धन्य हो जाता है।
घनघोर जंगल के बीच कैसे स्थापित हुआ बाबा झुमराज बाबा की पिंडी
झुमराज स्थान की कहानी भी बहुत रोचक और श्रद्धा से भरा हुआ है। सभी जानते हैं कि अनंत काल से भक्त कांवर लेकर बाबाधाम आते हैं और मनोकामना ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ पर जलार्पण करते हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1800 में संत झुमराज पांडेय प्रयागराज से जल उठाकर बाबा बैद्यनाथ धाम आ रहे थे। यात्रा के क्रम में वे बटिया जंगल में विश्राम के लिए रूके थे, तभी हिंसक जानवर शेर के द्वारा शिव के अनन्य भक्त झुमराज पांडेय हमला कर दिया गया, फलस्वरूप वहीं पर उनकी मृत्यु हो गई। किवदंतियां है कि जहां पर उनका देहावसान हुआ था उसी गांव के ग्रामीणों (टिकेतौं) को झुमराज जी की आकाशवाली हुई कि मेरी पिंडी बनाकर जन-जन तक पहुंचाओं, जो भी श्रद्धा और विश्वास के साथ मेरे पास आयेगा उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। आकाशवाणी के पश्चात गांवों वालों (टिकतों) ने बाबा झुमराज की पूजा-अर्चना की और सभी लोगों तक यह बात पहुंचाई। आज भीं वहां पर वह मिट्टी से बना पिंडी है, लोग उस पिंडी की पूजा करते हैं।
फुलहस (मन्नत) की परंपरा और झुमराज स्थान में बलि प्रथा की शुरूआत
झुमराज स्थान में फुलहस(मन्नत) की एक परंपरा है जो फुलधारी(टिकैत) के द्वारा किया जाता है, फुलहस के बाद जिसकी मनोकामना पूर्ण होती है वो हर्षोल्लास के साथ पूजा करते है। बाबा झुमराज खुद वैष्णव थे पर बाद में टिकैत को स्वप्न आया कि बकरों की बली की जाए ताकि हमारे जंगल दुत-भूत को भोजन मिल सके। इसी तरह बलि परंपरा शुरू हुई। गिधौर के राजा रावणेश्वर थे लेकिन बटिया पर चकाई राजा का प्रभाव था, प्रभाव कम करने के लिए दोनो के बीच मे लड़ाई हुई और गिधौर राजा विजेता बने तब उन्होंने बाबा झुमराज स्थान में पूर्ण बलि यानी 14 बकरे का बलि दिए, तब से पूर्ण बलि और अर्ध बलि का चलन है । झुमराज स्थान पर लोगो का अटूट विश्वास, भरोसा और भक्ति है जो भी लोग मुराद लेके आते है उनकी झोली भर जाते है।