रांची। 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ, जिसके प्रथम राज्यपाल प्रभात कुमार और मुख्यमंत्री बाबुलाल मरांडी बने। अलग राज्य के गठन होने के बाद से ही झारखंड में राजनीतिक अनिश्चितता बनी रही, झारखंड भारत का ऐसा राज्य है जहां पर एक सीट वाला निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बन जाता है। खनिज, संपदा से भरपूर इस राज्य के राजनीतिक भविष्य पर अनिश्चतता के बादल के घीरे रहने के कारण यहां के संसाधन का जमकर बंटाधार हुआ। यूं कहे तो झारखंड को राजनातिक प्रयोगशाला बना दिया गया, जिसका एचओडी राज्य के बाहर दिल्ली में बैठा कोई रिंगमास्टर नेता होता था। वर्ष 2014 स्थापना के बाद का सबसे शुभ साल था, जब किसी राजनीतिक पार्टी को पहली बार पूर्ण बहुमत मिली और इस तरह राजनीतिक मंडियों में बोली लगने से झारखंड बच गया, उसके बाद क्या हुआ इसके विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा।
18 मई 2015 को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में नया सवेरा आया जब देश के पहली आदिवासी महिला राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू बनी और इस इतिहास का स्वर्णिम गवाह बना झारखंड। कोई सोच भी नहीं सकता था कि ओड़िशा के समान्य आदिवासी परिवार में जन्मी एक बेटी किसी दिन राज्यपाल बनेगी खनिज, संपदा से भरपूर राजनीतिक अनिश्चताओं से घिरे रहने वाले राज्य को पूर्ण बहुमत की सरकार तो 2014 में ही मिल गई थी लेकिन राज्य के नाम पर चार चांद 18 मई 2015 को लगा जब राजभवन के बिरसा मंडप में आयोजित एक समारोह में राज्य के मुख्य न्यायाधीश न्यायमुर्ति वीरेन्द्र सिंह ने द्रौपदी मुर्मू को शपथ दिलाई। श्रीमति मुर्मू ने डॉ. सैयद का स्थान लिया। यह देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल थीं। ओडिशा के मयूरभंज जिले की रहनने वाली द्रौपदी मुर्मू इससे पहले ओड़िशा में दो बार रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक रह चुकी थी, साथ भाजपा – बीजद की ओड़िशा में बनी गठबंधन सरकार में मंत्री रह चुकी थीं।
झारखंड जैसे राजनीतिक प्रयोगशाला वाले राज्य को श्रीमति मुर्मू जैसी तेज तर्रार, जानकार राज्यपाल की जरूरत थी। राज्यपाल की शपथ लेने के साथ ही वो अपने कार्य में पूरी तन्मयता के साथ जुट गई। आज उनका कार्यकाल पूरा हो रहा है। सूबे की पहली महिला राज्यपाल बनने वाली द्रौपदी मुर्मू के इन पांच साल के कार्यकाल में अनेक उपलब्धियां भी जुड़ी। उन्होंने न केवल लेट – लतीफ और अनियमतताओं से भरे विश्वविद्यालयों की व्यवस्थाओं को सुदृढ़ की अपितु वहां की बिगड़ी हुई शिक्षा व्यवस्था को पुनः बहाल करने की कोशिश भी की। उन्होंने अपने प्रयास से सिर्फ राज्य की चरमराई हुई शैक्षणिक व्यवस्था व राजनीतिक अस्थिरता को ही नहीं समाप्त किया बल्कि राज्य के सर्वागीण विकास में एक नई लकीर खींची।
चांसलर पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन नामांकन
सुस्त पड़े राज्य के विश्वविद्यालयों को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने डिजटल रफ्तार दी। सभी विश्वविद्यालयों को देश – दुनिया में नीत आ रहे बदलाव के साथ न केवल जोड़ा बल्कि उसे कदमताल करने के लायक भी बनाया । राज्य में पहली बार चांसलर पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन नामांकन की सुविधा शुरू की गई, जिसके चलते लाखों छात्रों को राहत पहुंची। 2016 में विश्वविद्यालयों के लिए लोक अदालत लगाई गई। इसमें विश्वविद्यालय शिक्षकों व कर्मियों को करोड़ों रुपये के मामले का निष्पादन हुआ।
जनजातीय शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर हमेशा मुखर
द्रौपदी मुर्मू के पूरे कार्यकाल को देखें तो पता चलता है कि जनहित के मुद्दे पर वो हमेशा मुखर रही। जिस सरकार के आगे अच्छे – अच्छे की घिघी बंध जाती थी उस सरकार को राज्यपाल जनजातीय शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर लगातार मुखर होते हुए सरकार को आवश्यक निर्देश देती रही। उनके प्रयास के कारण ही राज्य को पहला जनजातीय विश्वविद्यालय मिलने की आस जगी।
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में डिग्री कॉलेज खोलने की पहल
राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर राज्यपाल सदैव सक्रिय रही। राज्य में राज्य में नए विश्वविद्यालयों व प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों में डिग्री कॉलेज खोलने, क्षेत्रीय व जनजातीय भाषाओं की पढ़ाई शुरू करने के लिए भी उनकी पहल सराहनीय रही। वर्षों से पीछे चल रहे हैं राज्य की शैक्षणिक सत्रों को भी दुरुस्त करने का काम महामहिम के प्रयास से हुआ है।
…जब सीएनटी – एसपीटी संशोधन विधेयक को राज्यपाल ने वापस लौटा दिया
आमधारणा है कि राज्यपाल का कुछ काम नहीं होता, राज्यपाल सिर्फ राज्य सरकार के कार्यों पर मुहर लगाती है या फिर यूं ही अपना कार्यकाल पूरा हो जाता है। उस धारणा के विपरीत राज्य में पहली बार पूर्ण बहुमत पाकर सरकार बनाने वाली भाजपा के सशक्त मुख्यमंत्री रघुबर दास नेतृत्व वाली झारखंड सरकार द्वारा जब राज्य के ज्वलंत मुद्दे में संशोधन सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक राज्यपाल के पास भेजा गया तो राज्यपाल ने इसे वापस लौटा दिया, उसके बाद द्रौपदी मुर्मू खूब चर्चा में आईं थीं। उन्होंने एसपीटी-सीएनटी संशोधन विधेयक सहित कई विधेयकों को सरकार को वापस लौटाने का कड़ा कदम भी उठाया। खूंटी में पत्थलगड़ी की समस्या के समाधान को लेकर वहां के परंपरागत ग्राम सभाओं, मानकी, मुंडा व अन्य प्रतिनिधियों को बुलाकर उनके साथ रायशुमारी भी उनकी अच्छी पहल मानी जाती है।