आठ मार्च को प्रत्येक वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूपे में मनाया जाता है। इस दिन पूरे विश्व मे महिलाओं के योगदान एवं उपलब्धियों की तरफ लोगों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए महिला दिवस मनाया जाता है। महिला दिवस का मुख्य उद्देश्य है नारी को समाज में सम्मानित स्थान दिलान उसके त्याग और समर्पण से परिचय करवाना। सृष्टि सृजन का आधार मानी जानी वाली नारी के प्रति सहानुभूति नहीं अपितु सम्मान का भाव रखना जरूरी है। नारी के त्याग पर अगर हम ध्यान दें तो पायेंगे कि अपने परिवार और समाज की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। एक मां खुद भूखी रह जाती है लेकिन अपने संतानों को कभी भूखा नहीं सोने देती। अपने कष्टों की परवाह किये बगैर पूरे परिवार की चिंता करती है, परिवार को सजाने और संवारने में वो इतना व्यस्त हो जाती है कि उन्हें खुद के नींद भूख की चिंता ही नहीं रहती।
भारतीय संस्कृति में नारी का स्थान इस श्लोक से ही स्पष्ट हो जाता है। ‘यत्र पूजयंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। अब सवाल उठता है कि जिस देश में नारी के प्रति ऐसा भाव और संस्कृति हो उस देश में महिलाओं के साथ इतना भेदभाव क्यो…वस्तुतः भारत की ऐसी संस्कृति नहीं रही है, महिलाओं का स्थान भारत में सदा पुरुषों से ऊपर रहा है। हमारे यहां पुरुष और स्त्री अलग – अलग नहीं बल्कि एक है। दोनों में संघर्ष नहीं समत्व और सहयोग का भाव है। अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति अलग रही है। आजकल की लड़कियों की उपलब्धियों पर नजर डालें तो हम पाते है, कि ये लड़कियां हर क्षेत्र में बाजी मार रही हैं। किसी समय इन्हें कमजोर समझा जाता था किंतु इन्होंने अपनी मेहनत से हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर लोहा मनवाया है।
लोग महिलाओं के अधिकार की बात करते हैं, उनलोगों को मैं बताना चाहूंगी कि तुम्हारे अस्तित्व का कारण ही जब महिला है तो तुम उसे अधिकार देने वाले कौन होते हो? महिलाओं को उसका अधिकार नहीं बल्कि उसके प्रति अपना भाव बदलो, नजरिया बदलो…महिला उपभोग की वस्तु नहीं है वह मानव जीवन का सृजनकारी है। अक्सर हम देखते हैं नारी के चेहरे का बाजारीकरण कर विज्ञापन के रूप में परोसा जा रहा है। आये दिन बलात्कार, छेड़छाड़, यौनशोषण की घटनाएं सामने आ रही है। क्यों ऐसा क्यों हो रहा है महिलाओं के साथ. आज पूरे विश्व में महिलाओं के उपलब्धियों और योगदान का खूब गुणगान होगी, इस एक दिवस में सम्मान इतना मिलेगा कि पूछो मत लेकिन क्या यह भाव 365 दिन रहेगा? आजकल जो नारी के साथ हो रहा है वह बहुत ही दुःखद बात है। आये दिन हम अखबार और न्यूज में पढते/देखते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ की गई है या सामूहिक बलात्कार किया गया है। शायद ही कोई दिन ही जाता होगा जिस दिन महिला के साथ अत्याचार नही होता होगा। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए कि नारी के जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अपनी अस्तित्व बना पाया है और जिन्होंने उसे यहां तक पहुंचाया है, उसे ठुकराना या अपमान करना सही नही है।
माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्र रूप में है। माता यानी जननी। माँ को ईश्वर से भी बढकर माना गया है, क्योंकि भगवान को जन्म देने वाली भी एक नारी ही है। नारी के अंतहीन संघर्ष की व्यथा एक नारी ही समझ सकती है। नारी का सारा जीवन पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने में ही बीत जाता है। पहले पिता की छत्रछाया में उसका बचपन बीतता है। पिता के घर में भी उसे काम – काज में हाथ बंटाना पड़ता है। साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखती है। पढ़ाई पूरा होने के बाद उसका विवाह हो जाता है। विवाह के बाद उसकी जिम्मेवारी और अधिक बढ जाती हैं। पति, सास – ससुर की सेवा के बाद उनके पास अपने लिए समय न के बराबर मिलता है। बच्चे होने के बाद पूरा जीवन ही उसको संवारने में बीत जाता है। पता ही नहीं चलता उनका जीवन कब बीत जाता है। कई बार घर – परिवार के खातिर वे अपने अरमानों का भी गला घोट देती हैं। उन्हें इतना भी समय भी नहीं मिलता कि वे अपने लिए भी जीयें। परिवार के प्रति उनका यह त्याग, समर्पण और धैर्य ही उन्हें विशिष्ट स्थान दिलाती है, उन्हें सम्मान का अधिकारी बनाती है।