दिल्ली में हुई हिंसा के विरोध में ‘यूथ अगेन्स्ट जेहादी वायलेंस’ ने जंतर-मंतर से पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने तक शंतिमार्च निकाला। लगभग 4 हजार विश्वविद्यालयी छात्र-छात्राओं ने पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल रतन लाल तथा आई.बी. के कांस्टेबल अंकित शर्मा को दिल्ली पुलिस के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित मुख्यालय के बाहर माल्यार्पण व केंडल जलाकर श्रद्धांजलि दी। इस शान्ति मार्च का संदेश जिहादी हिंसा करने वालों को यह बताना रहा कि राष्ट्रवादी शक्तियां शांत हैं लेकिन कमजोर नहीं हैं।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता जेएनयू की प्रोफेसर अंशु जोशी ने बताया कि यहां केवल दो व्यक्तियों की हत्या नहीं बल्कि दो परिवारों की हत्या भी हुई है जो उन पर आश्रित हैं। पिछले कुछ समय से देश में एक नए तरह के विरोध की राजनीति चल पड़ी है। जिसमें नकाब पहन कर छुरी चाकू लेकर बच्चों महिलाओं को डरा कर विरोध हो रहा है। यह विरोध नहीं अपराध है, हिंसा है। इस बार जैसे ही दोबारा राष्ट्रवादी मोदी सरकार बनी तभी से विरोध की यह राजनीति चल रही है। कुछ शक्तियां हैं जो चाहती हैं कि यह देश बिखर जाए, उनका विरोध हमको शांति से करना होगा। शांति की संकल्पना पर बने रहने के कारण ही यह देश अब तक जिंदा रह पाया है। हम तो वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हैं तो हम सीएए में ऐसे प्रावधान क्यों रखेंगे जिसमें हमारे मुसलमान भाइयों और बहनों को तकलीफ हो। सीएए का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है फिर भी इसके विरोध में भ्रम फैलाया कर अशांति का वातावरण बनाया जा रहा है। सात साल की बच्ची को बुरका पहनाकर शाहीन बाग में बैठाकर अलगाव की बातें बुलवाना बेहद चिंता का विषय है।
प्रो. अंशु जोशी ने कहा कि हम उन जेहादी ताकतों के हिंसात्मक तरीकों का विरोध करते हैं जो आतंक का समर्थन करती हैं। हत्या और हिंसा की गंदी राजनीति जो लोग कर रहे हैं वह जान लें भारत को हम अपनी मां मानते हैं और मां के प्रति श्रद्धा सब पर भारी पड़ती है। हम अपनी भारत माँ का न तो आंचल मैला होने देंगे और न ही उसका मस्तक नीचा होने देंगे।
जे.एन.यू से ही मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. प्रवेश ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि एक तरफ संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर, महात्मा गांधी का अनुसरण करने का दिखावा करने वाले शाहीन बाग करते हैं वहीं दूसरी तरफ उन्हीं के लोग जाफराबाद कांड करते हैं। यह सही है कि उनके अधिकार हैं विरोध करने के, उन्हें सी.ए.ए. में कमी दिखती होगी जो वास्तव में है नही लेकिन उनकी समस्या अलग है। यह समस्या यह है कि अगर बाबा साहब अम्बेडकर आज संविधान बना रहे होते तो आज के हालात में वह इस तरह का संविधान नहीं बना पाते। इसलिए नहीं बना पाते क्योंकि जब बाबा साहब अम्बेडकर यूनिफार्म सिविल कोड और तमाम मुस्लिम विषयों पर बात कर रहे थे तो उस समय उनके सामने मुस्लिम समाज का पढ़ा लिखा तबका था जो उनसे चर्चा व बात करता था। असहमति होने पर वो तलवार, पिस्टल लेकर अपना विराध करने नहीं निकल जाता था। आज के समय में बाबा साहब होते तो जाफराबाद, चांदबाग, मौजपुर जैसी घटनाएं उनके साथ भी हो जातीं और यह संविधान नहीं बन पाता। हमने सब पंथों, धर्मों को सम्मान दिया है, पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है लेकिन हम सब एक हैं यही भारत का भाव है।