पिछले दो दिनों से प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों नें SSC के हेडक्वाटर (सीजीओ कंपलेक्स, लोधी रोड नई दिल्ली) के सामने डेरा डाल रखा है। उनकी मांग है कि SSC परीक्षा में हुई धांधली की मांग निष्पक्ष तरीके से किया जाय…छात्रों की दुर्दशा को देखकर साहित्यकार नीलोत्पल मृणाल का दिल पसीज गया और दुःखी होकर अपने फेसबुक वॉल पर प्रधानमंत्री के नाम खुला खत लिख डाला…यह खत सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है, आप भी पढ़िये और जानिये आखिर क्या है इस खत में……
आदरणीय प्रधानमंत्री साब,
होली है।देश का मुख्य त्यौहार है।रंगीन खुशियों का त्यौहार।आप पूरे देश को इस रंगोंउत्सव की बधाई दे रहे होंगे।उनसे आपकी अपील होगी कि अब 2014 के बाद के इस बदल चुके और खुशहाल हो चुके नये भारत की नयी होली हम पुरे हर्षोउल्लास के साथ मनाएं।आपके कहने भर की देरी थी कि देशवासी अब हर्षित मूड में अपने घर में उत्सव की तैयारी में होंगे। मैं भी चार पुड़िया रंग,मुट्ठी भर अबीर खरीद बाज़ार से लौट रहा था कि एक भीड़ के हो हल्ला की आवाज़ आयी। मैंने सोंचा, होली का पर्व है, महानगर दिल्ली से तो मजदूर से लेकर छात्र सब होली मनाने अपने अपने घर गए,
फिर ये देश की राजधानी की चौड़ी सुघर लोधी रोड पे हज़ारों की संख्या में चीख चिल्ला रहे लड़के लड़कियां कौन हैं साहब? कौन हैं ये अभागे जो होली की मस्ती छोड़, घर परिवार से दूर..न्याय दो,न्याय दो का नारा लगा रहे। क्या इनके पास वो कैलेंडर नही जिसमे होली का पर्व अंकित हो या फिर ये छात्र इस देश के हैं ही नही जिन्हें होली जैसे पर्व से कोई मतलब हो?
मैंने उनसे पूछा, ” कौन हो अभागों?, क्या तुम्हारे लिए होली नही?” उन्होंने कहा, ” अभागे नही हैं, व्यवस्था के मारे हैं..देख लो। जब सिस्टम प्रतिभाओं को चूना लगा के होली खेल रहा हो तो हम छात्रों के लिए रंग वाली होली का कोई मतलब नही।
हुज़ूरे आला, ये आपके मुल्क के प्रतिभाशाली छात्रों की भीड़ थी। जी हां, ssc की परीक्षा देने वाले छात्र। जो इसलिए सड़क पे थे क्योंकि इनकी वर्षों की मेहनत से तैयार परीक्षा की तैयारी को मिनटों में लाखों रूपये लेकर आपका ही सिस्टम बेच दे रहा।
ये छात्र चीख चीख कह रहे, प्रश्न पत्र लिक हो गया है, हम बर्बाद हो गए साब।
आदरणीय प्रधान महोदय, अपने अमात्यों को भेज इन छात्रों से पुछवाईए कि, अच्छे दिन आये क्या मित्रों..छात्रों?
ये छात्र अब इस देश की चौकीदारी के लिए कितने इंच की छाती का चौकीदार चुने जो इनके प्रश्न पत्र जो लीक होने से बचा सके, एक निष्पक्ष परीक्षा ले सके और छात्रों के साथ न्याय कर सके। उनकी प्रतिभा को योग्यतानुसार पुरस्कार मिल सके।
हुज़ूर, इन लड़कों के हाथ में एक पोस्टर है। इस पोस्टर में कुछ रेट का जिक्र है। लिखा है , आज का भाव- नौकरी के पोस्ट के साथ उसके भाव का जिक्र है जो 40 लाख से लेकर 10- 8 लाख के भिन्न भिन्न कीमतों में उपलब्ध है।
क्या शानदार बाज़ार है सर…सबकुछ पारदर्शी और स्पष्ट… जनपथ मार्केट से भी ज्यादा स्पष्ट रेट लिस्ट। एक दाम-गारंटी काम।
वजीरे आला महोदय, आप सच कह रहे थे।कुछ सोंच के ही तो रोजगार का पकौड़ा मॉडल लांच किया था।
छात्रों के पास साफ़ साफ़ विकल्प है। जिनके बाप की औकात है जो जमीन बेचने से लेकर जमीर बेच जहां से भी 40 लाख ले आएं उनके बच्चे सरकारी नौकरी करें। और जिन छात्रों के बाप पहले से ही पकौड़े बेच रहे थे, पान बेच रहे थे,चाय बेच रहे थे और बड़ी मेहनत से खून पसीना लगा अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया , प्रतियोगिता परीक्षा पास करने लायक बनाया उन मेहनतकश छात्रों के पास एक सुंदर सलोना विकल्प है कि वो अपने बाप से अब जिंदगी की आखिरी क़िस्त मांग लें और 10 हज़ार की पूंजी से पकौड़ा बेचना शुरू कर दें।
महाबली, इस देश की विशाल पकौड़ा प्रतिभा को आशीष दीजिये की ये इस मुल्क को ठेले और कढ़ाही का देश बना सकें।
पर क्या करियेगा सर, पता नही किसकी नजर लगी है इन छात्रों को, ये जिद पे अड़े हैं कि सरकारी नौकरी चाहिए। वो भी बिना लाखों दिए।बिना ssc के चैयरमैन को प्रसादी चढ़ाये।
अब चैयरमेन चढ़ावा मांग रहा तो आप क्या करेंगे? आप ठहरे भारत देश के प्रधानमंत्री।आप भारत के चौकीदार हैं और ssc तो युगांडा से परीक्षा आयोजित करवाती है, सारा नियंत्रण दक्षिण सूडान का है परीक्षा प्रणाली पर। अगर भारत में होता तो क्या मजाल कि घपला हो जाता।
नीरव मोदी ने भी अगर भारत का एक चवन्नी भी उठाया होता तो आज जेल में होता। पर उसने चूँकि बुरुंडी के बैंक का पैसा गटका और रात के अंधेरे में कम्बल ओढ़ के पद्मावती के पालकी वाले रैली में बैठ बैलगाड़ी से वेनेजुवेला से यात्रा प्रारंभ कर चार बजे भोर होते होते चिली पहुँच गया, इसमें आप क्या करते?
सर, ए सर..इन बेवकूफ छात्रों को समझाइये। कुछ शब्द बोल दीजिये इन छात्रों के लिए” मित्रों अच्छे दिन आएंगे।आपको रोजगार मिलेगा।2019 की तैयारी करो, ssc की तैयारी छोड़ दो।”
कम से कम इतना बोल दीजियेगा तो जा के घर रैली की तैयारी करेंगे, fb पे दरबारी पोस्ट लिखने का अभ्यास करेंगे। नीलोत्पल मृणाल जैसे देश विरोधी राक्षसों से निपटने की तैयारी करेंगे।
क्या पड़े हैं 25 गज के कमरे में कुकर की सिटी के बीच किताब ले के बैठे जिंदगी का रास्ता खोजने में? पढ़ लिख के मर के अब सड़क पे बौआ रहे न्याय मांगने। किसी देश की युवा प्रतिभा को ऐसा करना चाहिए क्या? इन्हें होली मनाना चाहिए था न?
मैं उस भीड़ में खड़ा था सर,एक पत्रकार ने एक लड़की से पूछा”क्या आपको घर वाले ने आंदोलन के लिए आने दिया,डर नही लगा?”
महाबली आपको मालूम? लड़की ने मुठ्ठीयां तान कर हाथ हवा में लहरा के कहा ” हम किसी से डरते नही। घर वाले क्यों रोकेंगे,उन्होंने हमें घर से दूर भेज पढ़ाया लिखाया..अब जब अन्याय हुआ तो हिम्मत दे लड़ने भेज दिया है। डरना तो हुकूमत को होगा।”
साहब मैं दंग था हरियाणा से आयी उस छात्रा की हिम्मत देख।
मुझे लगा कि देश बतोले बेटों के गप्प और 56 इंच के सीने से नही, ऐसी हुंकार भरती बेटियों के हौंसले से चलता है।
सर, ये बहुत जिद्दी पीढ़ी है। होली मनाने नही जायेगी। लड़ेगी व्यवस्था से। बेईमानों की होली ख़राब कर के रहेगी।
मैं उस लड़ती छात्र सेना से विनती कर आया हूँ” साथी होली खेलना मत, अबकी इस सड़ी व्यवस्था की होली जला के आना”।
लड़ो..लड़ो..लड़ो..साहब आपसे भीड़ गये हैं हम।जय हो।