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केंद्र की एनडीए सरकार ने एससी/एसटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है. सरकार ने एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट से अपना आदेश वापस लेने की मांग की है. सरकार की मानें तो एसीसी/एसटी एक्ट पर आदेश ने देश के आपसी सौहार्द को चोट पहुंचाने का काम किया, जो कानून के विपरीत है और इससे कानून हल्का हुआ है. अदालत के दिशा निर्देशों से एक्ट के उन प्रावधानों पर भी असर पडा जो उसके दांत हैं. केन्द्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अनुसूचित जाति – जनजाति कानून पर उसके फैसले ने इसके प्रावधानों को कमजोर किया है, जिससे देश को ‘बहुत नुकसान ’ पहुंचा है.
केंद्र सरकार की ओर से एटॉर्नी जनरल कहा कि एफआईआर दर्ज करने से पहले डीएसपी द्वारा जांच के आदेश अथॉरिटी को एक्ट के विपरीत काम करने को विवश करना है और ये कानून का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि बीस मार्च का सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरी तरह से इस पर आधारित है कि कोर्ट कानून बना सकता है और उसके पास कानून बनाने का अधिकार है लेकिन तब जब उस विषय को लेकर कोई कानून न हो. यानी कोर्ट तभी कानून बना सकता है जब कानून न हो.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह मामला काफी संवेदनशीलशील है और इससे देश में खलबली मची है एवं लोगों में गुस्सा और बेचैनी बढ़ी है, जिस कारण आपसी सौहार्द बिगड़ा है. बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी और सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में सुनवाई भी की थी. पिछले दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान काफी संपत्ति का नुकसान हुआ था एवं कई लोगों की जानें भी गई थी. इसके विरूद्ध में दस अप्रैल को जनरल कैटेगरी वालों के द्वारा कथित रूप से बंद किया गया था. हांलाकि इस बंदी में कहीं से किसी प्रकार की अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली थी.