…जब डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, ‘इस पके आम के लिए आमों के पेड़ मत काटो’

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की पुण्य तिथि पर स्मृति शेष
23 फरवरी 1963 को राजेन बाबू को जहानाबाद से सुबह -सुबह एक तार मिला।
उसे पढ़ते ही उनकी तबियत बिगड़ने लगी।
तार के जरिए यह सूचना आई थी कि उनके मित्र सुलतान अहमद नहीं रहे।
नर्स ने तुरंत ऑक्सीजन लाने के लिए कहा।आॅक्सीजन सिंलेडर आने में थोड़ी देर हुई।वैसे ऑक्सीजन सिलेंडर दरवाजे पर आया ही था कि राजेन बाबू नहीं रहे।
इस तरह एक आम आदमी की तरह जिए और मरे राजेन बाबू।
उसके बाद कोई दूसरा राजेन बाबू पैदा नहीं हुआ जिसके बारे में कोई परीक्षक लिखे कि ‘परीक्षक से परीक्षार्थी बेहतर है।’
सन 1962 में राष्ट्रपति पद से अवकाश मिलने के बाद जब डा.राजेंद्र प्रसाद पटना आए तो सदाकत आश्रम परिसर में रहने लगे।यह वही मकान था जहां से वे आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे।उन्हें यह स्थान बहुत पसंद था।
पहले से ही अत्यंत सामान्य किस्म का घर था वह।बाद में रहने लायक भी नहीं रह गया था। जय प्रकाश नारायण ने चंदा करके उसे राजेन बाबू के लिए रहने लायक बनवाया।
हालांकि जेपी उनके लिए एक अलग मकान बनवाना चाहते थे।
पर उसके लिए आम के पेड़ काटने पड़ते।
राजेंद्र बाबू ने इस पर कहा था कि ‘इस पके आम के लिए आम के पेड़ों को मत काटो।’
देश के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, संविधान सभा के अध्यक्ष और 12 साल तक राष्ट्रपति रहे डा.राजेंद्र प्रसाद के बुढापे में देखभाल करने में सरकार का शायद कोई खास योगदान नहीं था।समकालीन पत्रकार रवि रंजन सिंहा के अनुसार पटना में राजेंद्र बाबू के आसपास कहीं सरकारी तंत्र नजर नहीं आता था।
पटना के गंगा किनारे आम के बगीचे के बीच की उनकी ‘कुटिया’ में ए.सी.का भी प्रबंध नहीं था।
ऐसा उनके दमा के मरीज होने के कारण था या साधन के अभाव में ,इस पर कई बार चर्चा चलती रहती है।
तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ उनके ठंडे रिश्ते के कारण ऐसी चर्चाओं को बल मिलता रहा।
दोनों के बीच मन मुटाव और बढ़ गया था जब चीनी आक्रमण के बाद डा.राजेंद्र प्रसाद ने पटना के गांधी मैदान में ‘हिमालय बचाओ’ बैनर के नीचे हुई सभा को संबोधित किया। डा.राम मनोहर लोहिया द्वारा आयोजित उस सभा में जनरल करियप्पा भी शामिल हुए थे।सभा में कुछ कड़ी बातें कही गयी जो सरकार को अच्छी नहीं लगी।
पुराने समाजवादी उमेश जी बताते हैं कि राजेंद्र बाबू के निधन के समय संयोग से डा.लोहिया भी उनके पास बैठे थे।
राजेन बाबू के अंतिम संस्कार में शामिल होने जब जवाहर लाल नेहरू पटना नहीं आए तो उसका यह भी एक कारण बताया गया।राजेन बाबू के निधन के बाद बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री विनोदानंद झा ने प्रधान मंत्री को फोन करके पटना आने के बारे में पूछा था।प्रधान मंत्री ने कहा कि उन्हें जय पुर जाना है।वैसे अंत्येष्टि कार्यक्रम में राष्ट्रपति डा.राधा कृष्णन, केंद्रीय मंत्री लाल बहाुदर शास्त्री तथा अन्य कई बड़े नेता शामिल हुए थे।
डा.प्रसाद बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के बावजूद सार्वजनिक कार्यक्रमों का निमंत्रण जल्दी अस्वीकार नहीं करते थे।
28 फरवरी 1963 को उन्हें पटना विश्व विद्यालय में दीक्षांत समारोह को संबंोधित करना था।उसके लिए वे तैयार भी थे,पर
इसी बीच मित्र के निधन की खबर मिल गयी।
जब वे राष्ट्रपति थे तो उनके एक सचिव थे राजेंद्र कपूर ।वे नौकरी छोड़ कर राजेंद्र बाबू के साथ रहने पटना आ गए थे।
राजेंद्र बाबू ने किसी परीक्षा में कभी सेकेंड नहीं किया।
आजादी की लड़ाई में उनका योगदान अप्रतिम था।
केंद्रीय मंत्री, संविधान सभा के अध्यक्ष और 12 साल तक राष्ट्रपति रहे राजेंद्र बाबू के लिए उस जगह कोई ढंग का अब तक स्मारक नहीं बन सका है जहां उन्होंने अंतिम सांस ली और जहां से आजादी की लड़ाई लड़ी।
डा.राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के अविभाजित सारण जिले के जीरा देई गांव में हुआ था।
छपरा के जिला स्कूल में उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई।
उच्च शिक्षा के लिए वे प्रेसिडेंसी कॉलेज कलकत्ता गए।
कुशाग्र बुद्धि के राजेंद्र बाबू ने एटेंरस से बी.ए.तक की परीक्षाओं में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।एम.ए.की परीक्षा में भी वे विश्व विद्यालय में प्रथम आए।
वकालत पढ़ी। सन 1911 में वकालत प्रांरभ की की।पहले कलकत्ता और फिर पटना में । सन 1917 में वे चम्पारण सत्याग्रह में गांधी जी के सहयोग बने।
आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्होंने 1920 में वकालत छोड़ दी।
असहयोग आंदोलन में शमिल हो गए।
तीन बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।
अंतरिम सरकार में देश के खाद्य मंत्री थे।उन्हें 1962 में भारत रत्न से अलंकृत किया गया। वे बिहारी छात्र सम्मेलन के संस्थापक भी थे ।

(यह स्मृति लेख वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर जी के फेसबुक वॉल से लिया गया है)

 

 

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